साड़ी खरीदने का मन हो सिल्क का नाम लिया जाये ये तो हो नहीं सकता। शादी से लेकर फंक्शन तक सिल्क साड़ी महिलाओं की पसंदीदा रहती है। ये महंगी जरूर होती है लेकिन ग्रेसफुल लुक देती हैं।
जो सिल्क साड़ी महिलाओं को रॉयल लुक देती है उसका प्रोडक्शन इतना आसान नहीं है। बता दें भारत रेशम के उत्पादन में 18% योगदान देता है। जानेंगे सिल्क साड़ी का निर्माण कैसे किया जाता है।
दरअसल, ये अंडे मुर्गी के नहीं बल्कि सिल्कवर्म के होते हैं। इन्हें शहतूत के पेड़ पर पाला जाता है। यहां ये लार्वा यानी कोकून देते हैं। जिसका इस्तेमाल साड़ी बनाने में किया जाता है।
जानकर हैरानी होगी हर मादा सिल्कवर्म एक धागा बनाते हैं जिसकी लंबाई 100 मीटर तक होती है। ये सिल्कवर्म के आसपास चिपके होते हैं, जिसे अलग करना बेहद मुश्किल प्रोसेस है।
कोकून से धागा अलग करने के लिए इसे गरम पानी में उबाला जाता है। जिसका तापमान निश्चित होता है,यदि पानी ज्यादा गरम है तो धागा खराब हो जाएगा। इसे बार-बार धोया जाता है ताकि साफ हो जाए।
धोने के बाद सिल्क धागों में ब्लीच कर उन्हें डाई किया जाता है। ये रंग नेचुरल तरीके से तैयार किये जाते हैं ताकि सिल्क की क्वालिटि में दिक्कत न आए। इसके बाद धागे को सुखाया जाता है।
साड़ी तैयार से करने से पहले सिल्क धाकों को अच्छे से स्पिन किया जाता है। पहले तो ये काम बुनकर हाथों से करते थे लेकिन अब इसकी जगह बड़ी-बड़ी मशीनों का यूज होता है।
आखिर में मशीनों और प्रिंटिंग की मदद से सिल्क साड़ी बुनी जाती है। साड़ियों को फिनिशिंग टच देकर उन्हें चमकदार और चिकनी बनाया जाता है, जिससे वे शानदार लुक देती हैं।