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प्रेमानंद महाराज ने बताया इन चार जगहों पर हमेशा रहना चाहिए मौन

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मौन आत्म-चिंतन और शांति का प्रतीक है

इन चार स्थानों पर मौन रहने से व्यक्ति स्वयं से जुड़ता है, आत्म-विश्लेषण करता है और आध्यात्मिकता की ओर बढ़ता है। इससे मन की शांति बनी रहती है और जीवन में सकारात्मकता आती है।

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स्नान के दौरान मौन रहना

स्नान न केवल शरीर की बल्कि मन की शुद्धि का भी प्रतीक है। इस समय शांत रहने से मन एकाग्र होता है और नकारात्मकता दूर होती है।

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शौच के दौरान मौन रहना

शौच एक शारीरिक शुद्धिकरण की प्रक्रिया है। इस दौरान बोलने से मन और शरीर दोनों अशुद्ध हो सकते हैं और यह स्वास्थ्य के लिए भी ठीक नहीं माना जाता।

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श्मशान घाट पर मौन रहना

श्मशान घाट पर मौन रहने से हमें जीवन के असली सत्य का अनुभव होता है। यह हमें नश्वरता की याद दिलाता है और अहंकार कम करता है।

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किसी बीमार से मिलने पर मौन रहना

बीमार व्यक्ति पहले से ही कमजोर होता है, ऐसे में अधिक बातचीत करने से उसकी ऊर्जा कम हो सकती है और उसे आराम करने में परेशानी हो सकती है।

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क्यों रहना चाहिए मौन

प्रेमानंद महाराज ने बताया कि इन चार जगहों पर हमेशा शांत रहकर भगवत चिंतन करना चाहिए, ये समय भगवान के चिंतन और प्रार्थना का है।

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