बेटे की परवरिश सिर्फ मां की नहीं, पिता की भी बराबर जिम्मेदारी होती है। जब बेटा देखता है कि पिता उसके साथ वक्त बिताते हैं, खेलते हैं — तभी उसमें सिक्योरिटी और कॉन्फिडेंस आता है।
बेटे को खुद अपनी भावनाएं महसूस करने दें। अगर वो दुखी है तो रोने दें, अपनी बात कहने दें। इमोशनली रेगुलेटेड लड़का ही बड़ा होकर सेंसिटिव, मजबूत और समझदार मर्द बनता है।
"देखो शर्मा जी का बेटा कितना अच्छा है" जैसी बातें बच्चे के आत्मविश्वास को तोड़ देती हैं और उसमें सेल्फ डाउट भर देते हैं। हर बच्चा अलग होता है, उसकी यूनीकनेस को पहचानें।
इस वीडियो में Child-Teen Psychologist श्वेता गांधी ने पिता के लिए कुछ बातें कहा है, जो उन्हें अपने बेटे के सामने भूलकर भी नहीं करना है, नहीं तो उन पर गलत असर पड़ेगा।
अगर बेटा बार-बार देखता है कि पापा उसके सामने होकर भी हमेशा फोन या काम में व्यस्त रहते हैं, तो वो अंदर ही अंदर उपेक्षा महसूस करने लगता है। इससे उसका आत्मबल कम होता है।
अगर आप पत्नी से ऊंची आवाज में बात करते हैं, तो बेटा यही सीखता है कि महिलाओं से ऐसा व्यवहार करना ठीक है। बेटे के सामने प्यार, सम्मान और साझेदारी से अपना रिश्ता दिखाएं।
बेटा आपके हर कदम को सिर्फ देख नहीं रहा होता, वो उसे अंदर तक समाहित कर रहा होता है। आपका ईमानदार व्यवहार, समय की पाबंदी और दूसरों के प्रति आपका व्यवहार ही उसकी नींव बनते हैं।
हर दिन भले 20 मिनट ही सही, लेकिन सिर्फ बेटे के साथ बिताएं। उसके दिन के बारे में पूछें, उसके साथ गेम खेलें, कोई कहानी सुनाएं — ये छोटे पल उसकी जिंदगी के सबसे मजबूत हिस्से बनते हैं।
अगर बेटा अपनी फीलिंग्स शेयर कर रहा है तो उसे ‘ओवर’ या ‘ड्रामा’ न समझें। उसे validate करें, सुनें और समझें। इससे वो आगे भी अपने दिल की बात कहने में घबराएगा नहीं करेगा।