मोदी सरकार के पिछले 9 साल में कई मौके आए जब विपक्षी पार्टियों ही सरकार की संकटमोचक बन गईं। इनमें उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक की पार्टियां शामिल रही हैं।
केंद्र की मौजूदा एनडीए सरकार के खिलाफ विपक्षी दलों ने अविश्वास प्रस्ताव पेश करने का बिगुल फूंक दिया है। इस बार भी मोदी सरकार की सेहतर पर संभवतः फर्क नहीं पड़ेगा।
चंद्रबाबू नायडू की तेलगु देशम पार्टी ने भी इस बार मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया है। जबकि 9 साल में कई मौकों पर उन्होंने साथ भी दिया है।
दिल्ली में ट्रांसफर-पोस्टिंग का बिल सरकार पेश करने वाली है। विपक्ष ने इसे पारित न कराने पर पूरा जोर लगा दिया है, वहीं सत्तापक्ष हर हाल में यह बिल पास कराना चाहता है।
आंध्र प्रदेश के दिग्गज नेता चंद्रबाबू नायडू को जो लोग जानते हैं, वे यह भी जानते हैं कि वे किसी भी गठबंधन के साथ जा सकते हैं। यही उनका मॉडल है। जहां मौका बनेगा, वहां नायडू रहेंगे।
लोकसभा में तो बीजेपी अकेले ही पूर्ण बहुमत में है लेकिन राज्यसभा में उसके सदस्यों की संख्या कम है। इस वक्त बीजेपी के 92 सदस्य हैं और एनडीए मिलाकर 110 तक पहुंचेंगे।
मोदी सरकार को राज्यसभा में बिल पास कराने के लिए असली परीक्षा देनी पड़ेगी। उच्च सदन में ही दोनों गठबंधनों के बीच असली टेस्ट होने वाला है क्योंकि यहां विपक्ष मजबूत है।
बीते 9 साल के दौरान बीजू जनता दल, वाईएसआर कांग्रेग, भारत राष्ट्र समिति जैसी पार्टियां मोदी सरकार का साथ देती रही हैं। वे वोटिंग के दौरान वॉक आउट करते हैं तो भी फायदा होगा।
केंद्र सरकार के खिलाफ इस बार संयुक्त विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लेकर आया है। इससे पहले कोई बिल पास करवाने के दौरान विपक्षी पार्टियां ही मोदी सरकार की संकट मोचक बनती रही हैं।