18वीं लोकसभा का मानसून सत्र 24 जून से 3 जुलाई तक चलेगा। 26 जून को नए लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव किया जाएगा। चुनाव में भाजपा को 240 सीटें मिली हैं।
भाजपा अपनी पार्टी से लोकसभा अध्यक्ष बनाना चाहती है। वहीं, टीडीपी की भी नजर इसपर है। विपक्षी दलों द्वारा भी अपना उम्मीदवार खड़ा किया जाएगा।
लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव लोकसभा के सदस्य करते हैं। वे गुप्त मतदान के जरिए वोट डालते हैं। जिस उम्मीदवार को सबसे ज्यादा वोट मिलते हैं, वह अध्यक्ष बनता है।
16वीं लोकसभा (2014) में सुमित्रा महाजन और 17वीं लोकसभा (2019) में ओम बिरला बिना किसी विरोध के लोकसभा अध्यक्ष बने थे। दोनों भाजपा नेता थे।
अध्यक्ष लोकसभा के भंग होने तक अपने पद पर बना रहता है। त्यागपत्र देने या लोकसभा के सदस्यों के बहुमत द्वारा पारित प्रस्ताव से उन्हें पद से हटाया जा सकता है।
लोकसभा अध्यक्ष पूरे सदन की सत्ता का प्रतिनिधित्व करते हैं। अध्यक्ष को यह तय करना होता है कि संसद की कार्यवाही संसदीय परंपराओं और लोकतंत्र के अनुसार चले।
लोकसभा अध्यक्ष सदन की बैठकों की अध्यक्षता करते हैं। संसद में अनुशासन और शिष्टाचार बनाए रखते हैं। यह तय करते हैं कि कौन कितने समय बोलेगा।
अध्यक्ष तय करते हैं कि सदन के नियमों का पालन हो। वह सांसदों के अधिकारों की रक्षा करते हैं और सदन की निष्पक्ष कार्यवाही सुनिश्चित करते हैं।
किसी प्रस्ताव पर मतदान की स्थिति में अगर पक्ष और विपक्ष के वोट बराबर हों तब अध्यक्ष मतदान करते हैं, इससे पहले नहीं।
संसद में अगर कोरम जितना भी सांसद उपस्थित नहीं हों तो अध्यक्ष कोरम पूरा होने तक बैठक स्थगित कर सकते हैं।
सांसद अनियंत्रित व्यवहार करें तो स्पीकर उन्हें सजा दे सकते हैं। वे सांसद को सदन कुछ समय के लिए निष्कासित कर सकते हैं। गंभीर मामले में सांसद को उनके पद से हटा भी सकते हैं।
अध्यक्ष को संसद में सभी के प्रति निष्पक्ष होना चाहिए, चाहे वे किसी भी राजनीतिक दल के हों। वे ऐसे समूहों की देखरेख करते हैं जो विशिष्ट मुद्दों की स्टडी करते हैं।