पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स के मुताबिक, मोदी सरकार 10 साल से सत्ता में है। ऐसे में महंगाई-बेरोजगारी के चलते जनता में असंतोष और इसके चलते कहीं न कहीं एंटी-इनकम्बेंसी फैक्टर पैदा हो जाता है।
PM मोदी की अगुआई में पिछले दो चुनावों में बीजेपी को जिस तरह धमाकेदार जीत मिली, उससे नेताओं में ओवरकॉन्फिडेंस था। बीजेपी को यकीन था कि इस बार भी वो मोदी लहर के भरोसे जीत जाएंगे।
उत्तर भारत में बीजेपी ने 82 सिटिंग सांसदों की जगह नए चेहरे उतारे। 2019 में नॉर्थ की 235 में से 183 सीटों पर BJP जीती थी, जिनमें से 82 सांसदों को 2024 में मौका नहीं दिया गया।
80 सीटों वाले राज्य यूपी में BJP को सिर्फ 33 सीटें मिलीं। वहीं सपा 37 सीटें जीती। यहां INDI गठबंधन का मुस्लिम-यादव फैक्टर और PDA (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) समीकरण काम कर गया।
UP में बीजेपी सिर्फ राम मंदिर के भरोसे जनता के बीच गई, जबकि वहां लोकल मुद्दों को लेकर असंतोष था। इसके अलावा पेपरलीक, अग्निवीर और महंगाई-बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर फोकस नहीं किया।
BJP को वेस्टर्न UP, हरियाणा और पंजाब में किसानों की नाराजगी भी झेलनी पड़ी। यहां के किसान MSP और तीन कृषि कानूनों को लेकर खासे नाराज थे, जिसके चलते वोटर्स BJP के खिलाफ गए।
महाराष्ट्र में बीजेपी शिंदे शिवसेना और एनसीपी-अजीत के साथ सरकार चला रही है। शिवसेना-NCP के दोनों धड़ों के बीच चल रही असली-नकली की लड़ाई में BJP उलझकर रह गई।