सुप्रीम कोर्ट ने साफ-साफ कहा कि शादी करना, पार्टनर चुनना सभी का अधिकार है। यह अनुच्छेद 21 के तहत आता है और सभी अपना पार्टनर चुनने के लिए स्वतंत्र हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कमेटी की रिपोर्ट को केंद्र सरकार के स्तर देखा जाना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि हर हाल में समलैंगिकों के अधिकारी की रक्षा की जानी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी वैधता नहीं दी है। यह फैसला 5 जजों की बेंच में 3-2 से सामने आया है। सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारों पर कमेटी बनाने का निर्देश दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकों के अधिकारों के लिए सरकार को कमेटी बनाने का भी निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि समलैंगिकों के सभी अधिकारों की रक्षा करना स्टेट की जिम्मेदारी है।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि समलैंगिकों के अधिकारों की रक्षा करें। समलैंगिक समुदाय के साथ कोई भेदभाव न होने पाए, यह सरकार तय करे।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिर्फ कानून बनाकर ही समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दी जा सकती है। यह काम सरकारों का है। सुप्रीम कोर्ट कानून नहीं बना सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकों को ज्वाइंट बैंक अकाउंट खोलने, पेंशन और ग्रेच्युटी का अधिकार देने पर विचार किया है। कोर्ट ने कहा कि सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस बिना किसी कारण समलैंगिकों को परेशान न करे। उनकी शिकायतों पर कार्रवाई की जाए। यदि कोई उन्हें परेशान करता है तो पुलिस उस पर कार्रवाई करे।
समलैंगिकों को शादी करने का अधिकार है लेकिन नागरिक संघ को कानूनी दर्जा देना केवल अधिनियमित कानून से ही संभव है। यह काम केंद्र और राज्य सरकारें ही कर सकती हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी जिलों में समलैंगिकों के लिए गरिमा गृह बनाए जाएं। उनकी शिकायतों को पुलिस प्राथमिकता दे। हर राज्य, हर जिले में कंट्रोल रूम बनाया जाए।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि यह कहना गलत है कि शादी अपरिवर्तनशील संस्थान है। इसमें कई तरह के बदलाव पहले भी आ चुके हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक जोड़ों और अनमैरिड कपल को बच्चा गोद लेने का अधिकार दे दिया है। कुछ जजों की अहसमति भी रही। असमत जज ने कहा कि इसमें कुछ दिक्कतें हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समलैंगिक घर नहीं जाना चाहते तो उन्हें मजबूर न करें। परिवार भी ऐसे लोगों को प्रताड़ित नहीं कर सकता। अगर परिवार ऐसा करे तो पुलिस उस पर कार्रवाई करे।
सीजेआई ने कहा कि विवाह संस्था स्थिर नहीं है। सती प्रथा विवाह, बाल विवाह जैसी चीजें लगातार बदलती रही हैं। ऐसे में इसे स्थायी नहीं कहा जा सकता है।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट को खत्म करना हमें सदियों पुराने समय में ले जाने वाला होगा। सीजेआई ने कहा कि इसे खत्म करना कहीं से भी उचित नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाली याचिक पर 10 दिनों तक मैराथन सुनवाई की। 11 मई को फैसला सुरक्षित किया। 17 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट फैसला दिया।