आचार्य चाणक्य भारत के महान विद्वानों में से एक थे। उन्होंने अपनी एक नीति में सुंदर और जवान पत्नी को पति के लिए जहर के समान बताया है। जानिए चाणक्य की इस नीति के बारे में…
अनभ्यासे विषं शास्त्रमजीर्णे भोजनं विषम्।
दरिद्रस्य विषं गोष्ठी वृद्धस्य तरुणी विषम्।।
बिना अभ्यास के शास्त्रों का ज्ञान, पेट खराब होने पर भोजन, गरीब के लिए समारोह और वृद्ध पति के लिए जवान पत्नी विष के समान होती है।
बूढ़ा पति जवान पत्नी को शारीरिक स्तर पर संतुष्ट नहीं रख सकता। इस वजह से उनके वैवाहिक जीवन में परेशानियां बनी रहती है। ये स्थिति एक पति के लिए जहर के समान मानी गई है।
बिना प्रैक्टिस के ज्ञान का कोई अर्थ नहीं क्योंकि धीरे-धीरे वो ज्ञान आप भूल जाएंगे। न तो आप स्वयं उसका लाभ ले पाएंगे और न किसी को दे पाएंगे। ये स्थिति भी ठीक नहीं मानी जाती।
अगर आपका पेट खराब है और फिर भी आप भोजन कर रहे हैं तो निश्चित रूप से आपकी सेहत खराब होने का खतरा बना रहेगा। इसलिए अजीर्ण होने पर भोजन को विष माना गया है।
गरीब व्यक्ति के लिए समारोह में जाना विष की तरह होता है क्योंकि ऐसी स्थिति में उसे अपने अपमान होने का भय रहता है। कईं बार ये स्थिति मृत्यु से भी अधिक कष्ट देने वाली होती है।