श्राद्ध पक्ष 18 सितंबर से शुरू हो चुका है जो 2 अक्टूबर तक रहेगा। इस दौरान लोग रोज अपने पितरों की शांति के लिए उपाय करते हैं। श्राद्ध में भोजन दान का विशेष महत्व है।
श्राद्ध में दिया गया भोजन या पिंडदान या अन्य चीजें पितरों तक कैसे पहुंचती हैं, इसके बारे में भी हमारे ग्रंथों में विस्तार से बताया गया है। आगे जानिए क्या लिखा है धर्म ग्रंथों में…
गरुड़ पुराण के अनुसार, जब हम पितरों के लिए श्राद्ध-पिंडदान करते हैं तो उनका नाम और गोत्र भी बोलते हैं। इसे के सहारे विश्वेदेव और अग्निदेव श्राद्ध के भोजन को उन तक पहुंचा देते हैं।
यदि हमारे पितृ देवयोनि में होते हैं, उन्हें वो भोजन अमृत के रूप में मिलता है। मनुष्य योनि में होते हैं तो भोजन के रूप में और पशु योनि में होते हैं जो घास के रूप मिल जाता है।
सच्चे मन से किया गया श्राद्ध और संकल्प लेकर दिया गया दान मंत्र के जरिए हमारे पितरों तक पहुंच ही जाता है चाहे जीव सैकड़ों योनि पार कर चुका हो। इसी से उसे तृप्ति मिलती है।
जिस प्रकार हजारों गायों में भी कोई बछड़ा अपनी माता को पहचान लेता है, उसी तरह नाम, गोत्र बोलकर दिया गया भोजन, दान आदि हमारे पितरों तक आसानी से पहुंच जाता है।