ग्रंथों के अनुसार, हमारे शरीर के विभिन्न अंगों में अलग-अलग देवताओं का वास होता है। इसी वजह से शरीर के कुछ अंग ज्यादा पवित्र माने गए हैं। कान भी इन अंगों में से एक है।
गोभिल गृह्य संग्रह के अनुसार, इंसानों के दाएं कान में वायु, चंद्रमा, इंद्र, अग्नि, मित्र तथा वरुण देवता का वास होता है, इसलिए इस कान को दूसरे कान से अधिक पवित्र माना गया है।
ग्रंथों के अनुसार, कान पंचतत्वों में से एक आकाश का प्रतिनिधि अंग है। आकाश को छोड़कर शेष सभी तत्व अपवित्र हो जाते हैं। इस कारण से भी दाएं कान को अधिक पवित्र माना गया है।
दायां कान अधिक पवित्र होने के कारण ही इसका महत्व भी अधिक है। यही कारण है कि शौच करते समय यज्ञोपवित (जनेऊ) को दाहिने कान पर लपेटा जाता है बाएं कान पर नहीं।
जब कोई व्यक्ति सांसारिक मोह-माया को छोड़कर अपने गुरु से दीक्षा लेता है तो गुरु उसे दाहिने कान में ही गुप्त मंत्र बताते हैं। यहां भी दाएं कान का महत्व का पता चलता है।
गृह्यसंग्रह ग्रंथ की मानें तो छींकने, थूकने, दांत के जूठे होने और मुंह से यदि गलती से झूठी बात निकल जाए तो दाहिने कान का स्पर्श करना चाहिए। इससे मनुष्य की शुद्धि हो जाती है।