हिंदू धर्म में यज्ञ की परंपरा काफी पुरानी है। यज्ञ में आहुति देते समय ‘स्वाहा’ जरूर बोला जाता है। स्वाहा शब्द का उपयोग क्यों किया जाता है, इसके पीछे एक कारण है, जो इस प्रकार है…
धर्म ग्रंथों में कई विशाल यज्ञों के बारे में बताया गया है, जो पुरातन समय में राजा-महाराजा आदि करते थे। इनके अलावा ब्राह्मण भी प्रतिदिन अपने घरों में ही यज्ञ जरूर करते थे।
यज्ञ की परंपरा आज भी जारी है। किसी भी शुभ कार्य से पहले जैसे गृह प्रवेश आदि के समय यज्ञ जरूर किया जाता है। देवी-देवताओं की पूजा के दौरान भी यज्ञ की परंपरा है।
परंपरा के अनुसार, जब भी यज्ञ होता है तो उसमें कई चीजों को मिलाकर एक प्रकार का मिश्रण तैयार किया जाता है, जिसे समिधा कहते हैं। इसे अग्नि में डालते समय स्वाहा जरूर बोला जाता है।
ग्रंथों के अनुसार, स्वाहा दक्ष प्रजापति की पुत्री हैं, जिनका विवाह अग्निदेव के साथ हुआ है। आहुति देते समय पत्नी स्वाहा का नाम बोलने पर ही अग्निदेव उस आहुति को स्वीकार करते हैं।
सामान्य रूप से स्वाहा का अर्थ है भस्म हो जाना। यानी जो भी आहुति यज्ञ में डाली जाती है उसे स्वाहा और अग्निदेव मिलकर पूरी तरह से जलाकर भस्म कर देते हैं।