श्राद्ध पक्ष 14 अक्टूबर तक रहेगा। नियम अनुसार श्राद्ध कर्म पुत्र के हाथों ही होता है, लेकिन यदि पुत्र न हो तो उसके स्थान पर कौन श्राद्ध कर सकता है। आगे जानिए क्या कहते हैं ग्रंथ…
पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए। अगर 1 से ज्यादा पुत्र हो तो सबसे बड़े पुत्र को ये काम करना चाहिए। अगर बड़े पुत्र की मृत्यु चुकी हो तो सबसे छोटा पुत्र श्राद्ध कर सकता है।
ग्रंथों की मानें तो अगर किसी व्यक्ति का कोई पुत्र न हो तो उनके स्थान पर पत्नी भी श्राद्ध कर सकती है। पुराणों मे कईं कथाएं हैं जिसमें महिलाओं द्वारा श्राद्ध करने का वर्णन मिलता है।
पुत्र और पत्नी के अभाव में सगा भाई और श्राद्ध कर सकता है। और वह भी न हो तो परिवार का कोई भी व्यक्ति श्राद्ध कर सकता है। इनके अलावा समान गौत्र का व्यक्ति भी श्राद्ध कर सकता है।
पुत्र, पत्नी, भाई के न होने पर पोता या प्रपौत्र पड़पोता भी श्राद्ध कर सकते हैं। अगर किसी के वंश में कोई भी न बचा हो तो पुत्री का पति एवं पुत्री का पुत्र भी श्राद्ध कर सकता है।
ग्रंथों के अनुसार, अगर सगा पुत्र न हो तो नियम पूर्वक गोद लिया गया पुत्र भी श्राद्ध का अधिकारी है। अगर पत्नी की मृत्यु हो जाए तो पति तभी उसका श्राद्ध कर सकता है, जब कोई पुत्र न हो।