प्रेमानंद महाराज से एक भक्त ने पूछा ‘कईं बार बच्चों-पत्नी पर क्रोध आ जाता है और हाथ भी उठ जाता है, बाद में दुख भी होता है। अपनी प्रवृत्ति कैसे सुधारूं?’ जानें क्या कहा बाबा ने…
प्रेमानंद महाराज ने कहा कि ‘गृहस्थ जीवन में कभी-कभी गुस्से का नाटक करना जरूरी होता है। परिवार में यदि किसी का भय न हो तो परिजन कुमार्ग यानी गलत रास्ते पर भी जा सकते हैं।’
प्रेमानंद महाराज के अनुसार, ‘क्रोध का अर्थ ये नहीं कि आप राक्षसी प्रवृत्ति के हो जाएं और ज्यादा ही बच्चे-पत्नी को पीट दें। ऐसा बिल्कुल भी न करें। ऐसा करने से परिवार बिखर सकता है।’
प्रेमानंद महाराज के अनुसार, ‘एक बात का ध्यान रखें कि यदि बच्चा आपसे डरेगा नहीं या उसे किसी बात का भय नहीं रहेगा तो कल वह गलत रास्ते पर भी जा सकता है। इसलिए डर जरूरी है।’
प्रेमानंद महाराज के अनुसार, ‘माता-पिता बच्चे के प्रथम गुरु होते हैं। बच्चों को सही मार्ग दिखाने के लिए गुस्सा करना ठीक है क्योंकि बच्चों को सुधारना माता-पिता का कर्तव्य होता है।’
प्रेमानंद महाराज के अनुसार, ‘भगवान ने पुत्र दिया है तो उसकी सेवा भी आपको दी है। उसे आप प्यार करो-दुलार भी करो, मित्र की तरह बर्ताव करो और समय आने पर क्रोध भी करो।’