रामचरित मानस के एक श्लोक में कुछ ऐसे लोगों को बारे में बताया गया है, जिनके जीवित रहते हुए भी उन्हें मरा हुआ ही समझना चाहिए। आगे जानिए कौन-हैं वे लोग…
जो व्यक्ति हमेशा काम यानी सेक्स के बारे में ही सोचता रहता है और अत्यंत भोगी होता है, उसके जीवित हुए भी उसे मरे हुए के समान ही समझना चाहिए।
जो व्यक्ति धर्म-कर्म के मामलों में दान देने से बचता हो और जरूरी जगहों पर भी हमेशा पैसा बचाने के बारे में सोचता हो, उसे भी मरा हुआ ही समझना चाहिए।
जिस व्यक्ति के पास अपने दैनिक कामों के लिए भी पर्याप्त धन न हो, उसे भी मरा हुआ ही जानना चाहिए, ऐसा रामचरित मानस में लिखा हुआ है।
जो व्यक्ति बदनाम है, उसे न तो घर, परिवार, कुटुंब, समाज, नगर या राष्ट्र कहीं भी सम्मान नहीं मिलता, वह व्यक्ति भी मरे हुए के समान ही है।
जो व्यक्ति निरंतर बीमारियों से घिरा हुआ रहता है, वह चाहकर भी सासांरिक सुखों का आनंद न ले पाएं, ऐसे व्यक्ति भी मरा हुआ ही जानना चाहिए।
अत्यंत वृद्ध व्यक्ति भी मृत समान ही होता है, क्योंकि वह अन्य लोगों पर आश्रित हो जाता है। वह चाहकर भी कुछ नहीं कर पाता, इसलिए उसे भी मृतक ही समझना चाहिए।
जो लोग खाने-पीने में या अन्य दूसरे मामलों में सिर्फ अपने ही बारे में सोचते हैं, उन्हें भी रामचरित मानस में मरे हुए व्यक्ति के समान ही माना गया है।
जो व्यक्ति भगवान को नहीं मनाता और उनका अपमान करता रहता है। ऐसे व्यक्ति को भी गोस्वामी तुलसीदासजी मरे हुए के समान ही बताया है।