पितृ पक्ष 29 सितंबर से शुरू हो चुका है, जो 14 अक्टूबर तक रहेगा। इस दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण-पिंडदान आदि किया जाता है। इससे पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है।
श्राद्ध कर्म के अंतर्गत ही पिंडदान किया जाता है। पिंड दान का महत्व कईं ग्रंथों में बताया गया है। पिंड बनाने के लिए उबले हुए चावल या जौ के आटे और काले तिल का उपयोग किया जाता है।
ग्रंथों में चावल को हविष्य अन्न कहा गया है यानी हवन में उपयोग आने वाला अन्न। पितरों को भी चावल विशेष रूप से प्रिय है। इसलिए पिंड बनाने में चावल का उपयोग विशेष रूप होता है।
चावल न हो तो पिंड बनाने के लिए जौ के आटे का उपयोग किया जाता है। जौ को सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा का प्रतीक माना जाता है। पवित्र होने के कारण ही इसका उपयोग पिंड बनाने में होता है।
पिंड चाहे चावल के बने हों या जौ से। इसमें काले तिल जरूर मिलाए जाते हैं। ग्रंथों के अनुसार तिल की उत्पत्ति भगवान विष्णु के शरीर से हुई है, इसलिए पिंड बनाने में इसका उपयोग होता है।