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मजदूर का बेटा रामू बाबू कैसे बना मेडलिस्ट, कभी किया वेटर का काम

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कौन है ब्रोंज मेडलिस्ट रामबाबू

रामबाबू 35 किलोमीटर रेस वॉक में भारत के लिए कांस्य पदक जीतने वाले कप एशियन गेम्स 2023 के मेडलिस्ट हैं।

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17 साल की उम्र से कर रहे हैं रेस वॉक

रामबाबू जब 17 साल के थे, तब उन्होंने वाराणसी की यात्रा की और यही से उन्होंने रेस वॉक करना शुरू किया। धीरे-धीरे करके आज एशिया खेलों तक पहुंच गए हैं।

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संघर्ष से भरी है रामबाबू की कहानी

रामबाबू के पिता उत्तर प्रदेश के बाउर गांव में एक दिहाड़ी मजदूर थे। उनके पिता केवल 3-3.5 हजार रु. महीने के कमाते थे और घर में 6 लोगों का पालन पोषण करते थे।

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होटल में वेटर की नौकरी करते थे रामबाबू

वाराणसी में रहने के दौरान रामबाबू को घर का खर्च उठाने के लिए वेटर के रूप में नौकरी भी करनी पड़ी, जिसके लिए उन्हें केवल ₹3000 महीने मिलते थे।

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रामबाबू ने की मनरेगा मजदूरी

कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान सोनभद्र जिले में रामबाबू ने मनरेगा मजदूरी भी की। इतना ही नहीं कभी रामबाबू को जूट की बोरी सिलने का काम भी करना पड़ा, जिसके लिए मात्र ₹200 दिन मिलते थे।

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घर से दूर जवाहर नवोदय में की पढ़ाई

रामबाबू जब पांचवी क्लास में थे, तो उनकी मां ने उन्हें जवाहर नवोदय बोर्डिंग स्कूल भेज दिया। जहां पर उन्होंने 12वीं तक पढ़ाई की और स्कूल मैराथन में कई बार हिस्सा भी लिया।

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2021 में नेशनल वॉक चैंपियन बने रामबाबू

2021 में 50 किलोमीटर नेशनल रेस वॉक चैंपियनशिप में रामबाबू ने सिल्वर मेडल अपने नाम किया था। इसके बाद सितंबर 2021 में उन्होंने 35 किलोमीटर प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता।

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हवलदार भी है रामबाबू

पिछले साल राष्ट्रीय खेलों में 35 किलोमीटर स्पर्धा में गोल्ड मेडल जीतने के बाद रामबाबू को सेना में हवलदार की पोस्ट भी मिली है, जिससे उनके घर के हालत काफी सुधर गए हैं।

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