झीलों का शहर कही जाने वाली ये सिटी आज गंभीर जल संकट से जूझ रही है। संरक्षणवादियों ने चेतावनी दी है कि अगर तत्काल कदम नहीं उठाए गए तो यहां जल्द ही 'शून्य जल दिवस' हो सकता है।
सोसाइटी फॉर कम्युनिटी हेल्थ अवेयरनेस रिसर्च एंड एक्शन (SOCHARA) के सचिव प्रफुल्ल सालिग्राम ने इस जल संकट के समाधान के लिए सामुदायिकीकरण की रणनीति पर जोर दिया है।
सामुदायिकीकरण का अर्थ है कि नागरिकों की भागीदारी को बढ़ावा दिया जाए ताकि वे अपने क्षेत्रों में जल संरक्षण के प्रयासों में सक्रिय भूमिका निभा सकें।
प्रफुल्ल सालिग्राम ने बताया कि 200 से 300 साल पहले बेंगलुरू में लगभग 400 झीलें थीं, लेकिन अनियंत्रित शहरीकरण के कारण इन झीलों में से अधिकांश गायब हो चुकी हैं।
अब ये शहर बाहरी जल स्रोतों पर अधिक निर्भर हो गया है। SOCHARA जल संकट के साथ अन्य सामाजिक मुद्दों पर भी काम कर रहा है, जैसे कि स्वास्थ्य, समानता, और वंचितों तक पहुंच सुनिश्चित करना।
हेनूर टास्कर्स समूह के सदस्य के. सुब्रमण्यन ने भी इस सामुदायिक जुड़ाव की प्रशंसा की। उनका मानना है कि जल संकट से निपटने के लिए नागरिकों की भागीदारी बेहद जरूरी है।
वेल लैब्स की निदेशक वीना श्रीनिवासन ने कहा कि नागरिक समूह अवैध अतिक्रमण के खिलाफ निगरानी करते हैं लेकिन शहर की बड़ी बुनियादी ढांचा चुनौतियों का समाधान अकेले उनके वश में नहीं है।
इसलिए यह जरूरी है कि बेंगलुरू के नागरिक और सरकारी एजेंसियां मिलकर जल संकट का स्थायी समाधान ढूंढें ताकि शहर को 'शून्य जल दिवस' जैसी भयावह स्थिति से बचाया जा सके।