महाराष्ट्र सरकार में मंत्री पद से वंचित छगन भुजबल के लिए क्या इस शख्स का विरोध अभिशाप बन गया? कभी सब्जी-अंडे बेचने वाले छगन की राजनीतिक हैसियत और मौजूदा विवाद क्या है।
फडणवीस सरकार में मंत्री आश्वासन के बाद अंतिम समय में नाम लिए जाने से छगन भुजबल खफा हैं। उन्होंने येवला में पार्टी कार्यकर्ताओं की बैठक बुलाई है, जहां वे बड़ा फैसला ले सकते हैं।
भुजबल ने सीधे पार्टी नेतृत्व पर सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा, "क्या मैं आपके हाथ का खिलौना हूं? जब आप कहे खड़ा हो जाऊं और जब कहे बैठ जाऊं? मुझे यह जानना है कि किसने मेरा नाम हटाया?"
OBC राजनीति के मजबूत स्तंभ छगन भुजबल ने हाल ही में मराठा समाज को कुनबी प्रमाणपत्र देकरOBC कोटे में आरक्षण देने का विरोध किया था। माना जा रहा है कि यही विरोध उनके लिए अभिशाप बन गया।
छगन भुजबल महाराष्ट्र के बड़े ओबीसी नेता हैं। वे हमेशा सामाजिक और किसान मुद्दों पर मुखर रहते हैं। हाल ही में उन्होंने मराठा आंदोलनकारी मनोज जरांगे पाटिल की मांगों का विरोध किया था।
1947 में जन्मे भुजबल मुंबई के भायखला में सब्जियां और अंडे बेचा करते थे। गरीबी में भी उन्होंने ग्रेजुएशन किया।बाद में शिवसेना से राजनीति शुरू की। 1985 और 1991 में मुंबई के मेयर बने।
1990 में शिवसेना-बीजेपी सरकार में मंत्री बनने के बाद, 1991 में उन्होंने कांग्रेस जॉइन कर ली। शरद पवार के नेतृत्व में एनसीपी के गठन के बाद भुजबल इस पार्टी का अहम हिस्सा बन गए।
भुजबल का नाम तेलगी स्टैंप स्कैम, मनी लॉन्ड्रिंग, और महाराष्ट्र सदन घोटाला शामिल रहा हैं। इनके चलते उन्हें जेल भी जाना पड़ा। हालांकि, उनके राजनीतिक करियर पर इसका असर नहीं पड़ा।
1991 में भुजबल ने शिवसेना में बड़ी फूट डाली और 18 MLA को साथ लेकर शिवसेना B बना ली थी। वह दलबदल कराने वाले पहले हाई-प्रोफाइल शिवसेना नेता थे। बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए।
1990 में शिवसेना और BJP सरकार में भुजबल मंत्री बने। 1991 में भुजबल ने शिवसेना छोड़ कांग्रेस में शामिल हो गए। बाद में शरद पवार के साथ NCP के फाउंडर मेंबर बन गए।
भुजबल बाद की सरकारों में लोक निर्माण विभाग, गृह और पर्यटन मंत्रालय जैसे विभागों को संभाला। छगन भुजबल 18 अक्टूबर 1999 से 23 दिसंबर 2003 तक महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री भी रहे।
अब सवाल उठता है कि छगन भुजबल की नाराजगी एनसीपी सुप्रीमो अजीत पवार के लिए कितना बड़ा झटका साबित होगी। उनकी येवला बैठक में कोई बड़ा फैसला पार्टी की राजनीति को नई दिशा दे सकता है।