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437 किमी पैदल चलकर अजमेर की दरगाह शरीफ पहुंचा था अकबर, जानें 10 फैक्ट

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दरगाह की पुरातात्विक होगी खोज

अजमेर शरीफ दरगाह को भगवान शंकर का मंदिर बताने वाली पिटीशन को कोर्ट ने स्वीकार किया है। अब लोगों को इस दरगाह के इतिहास को जानने की इच्छा दिख रही है।

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मोइनुद्दीन चिश्ती ने यहीं त्यागी देह

"सुलतान-उल-हिंद" नाम से विख्यात ये दरगाह शरीफ ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की समाधि है। साल 1235 में यही वो जगह है, जहां उन्होंने प्राण त्यागे थे।

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तुर्की से भारत आया था तुगलक

 सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने साल 1332 में दरगाह का पहला Recorded निर्माण कार्य शुरु किया था। उन्होंने महान सूफी संत की याद में ये दरगाह बनवाई थी।

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बड़े एरिया में बनाई गई दरगाह

अजमेर की ये दरगाह 20,000 वर्ग मीटर में फैली हुई है। इसके अंदर मस्जिदें, उनके बड़े-बड़े गेट और रहवासी कमरे बनवाए गए थे।

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आर्किटेक्चर

अजमेर की दरगाह शरीफ का डिजाइन मुगल शैली में बनाई गई है, इसमें व्हाइट मार्बल और गोल्डन गुंबद शामिल हैं।

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बुलंद दरवाजा

 अजमेर की दरगाह शरीफ का मेन गेट है, इसे सुलतान गियासुद्दीन खिलजी ने बनवाया गया था। ये अपनी हाइट के लिए जाना जाता है। इस वजह से इसे "बुलंद" कहा जाता है।

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महिलाओं के लिए इबादत की अलग इंतजाम

शाहजहाँ, अकबर ने अजमेर की दरगाह के विकास और इसे भव्य बनाने के लिए बहुत काम करवाया। शाहजहाँ की बेटी ने यहां महिलाओं के लिए खास प्रेयर रूम बनवाए थे।

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उर्स का आयोजन

दरगाह में हर साल ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की पुण्यतिथि पर उर्स समारोह का आयोजन किया जाता है, देश -विदेश से श्रद्दालु यहां पहुंचते हैं।

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जरुरतमंदों की मदद करती दरगाह कमेटी

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह कमेटी यहां आने वाले दान को कलेक्ट करती है। यहां जरुरतमंदो को हॉस्पिटल और गेस्ट हाउस को का संचालन करती है, जिससे गरीबों की मदद की जा सके।

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शिव मंदिर का दावा

हिंदू संगठन के दावे के मुताबिक दरगाह की जगह पहले एक शिव मंदिर था। यही दावा कोर्ट में किया गया है।

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