उत्तर प्रदेश के मथुरा का वृंदावन श्रीकृष्ण भक्तों के लिए बेहद खास है। यहां हर साल जन्माष्टमी सबसे अलग ढंग से मनाई जाती है। बांके बिहारी की प्रतिमा काफी अद्भुत और अलौकिक है।
वृंदावन बांके बिहारी का विग्रह काले रंग का है। यह देखने में बेहद खूबसूरत है। इसमें राधा रानी की झलक भी मिलती है। इस विग्रह में राधा-कृष्ण के दर्शन एक साथ होते हैं।
वृंदावन में बांके बिहारी त्रिभंग स्वरूप में हैं। मतलब उनके सिर, कमर और पैर मुड़े हुए हैं, जो इस विग्रह को खास बनाता है।
वृंदावन में बांके बिहारी के चरण दर्शन साल में सिर्फ एक बार होते हैं। सिर्फ अक्षय तृतीया पर ही भक्तों को चरण दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता है।
वृंदावन में बांके बिहारी के हाथ में मुरली भी सिर्फ शरद पूर्णिमा को ही पकड़ाई जाती है। उनका यह स्वरूप अविस्मरणीय होता है।
पहले बांके बिहारी का विग्रह वृंदावन के ही निधिवन में था। 15वीं शताब्दी में प्रसिद्ध संत स्वामी हरिदास ने सबसे पहले इस विग्रह का वर्णन किया था।
संत हरिदास के शिष्य जगन्नाथ दास ने 1864 में बांके बिहार मंदिर का निर्माण करवाया था और विग्रह को मंदिर में रखा था। मंदिर का मौजूदा स्ट्रक्चर का काम 1917 में पूरा हुआ।