कारगिल वॉर में इस तोप की भूमिका महत्वपूर्ण रही थी। इससे ऊंचाई पर बैठे दुश्मन पर कड़े हमले हुए थे। 70 डिग्री तक घूमने वाली इसकी बैरल ने दुश्मनों की खटिया खड़ी कर दी थी।
पाक आर्मी को सबसे ज्यादा नुकसान इस रॉकेट लॉन्चर ने पहुंचाया था। DRDO के इस रॉकेट लॉन्चर की 1 यूनिट में 12 रॉकेट 44 सेकेंड में फायर होते हैं। मार्क 1-2 की रेंज 40KM, मार्क-3 की 65KM
भारतीय सेना के जवानों ने कारगिल युद्ध के छक्के इंसास राइफल से उड़ा दिए थे। इसके सटीक निशानों ने दुश्मनों के हौसले पस्त हो गए थे। ये राइफल ऑर्डिनेंस फैक्ट्री में बनाए गए थे।
स्टर्लिंग सबमशीन गन (SAF 1-A-1) का साइलेंस वर्जन इस बंदूग की बैरल में साइलेंसर लगा होता है। यूपी के कानपुर की ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बनी लाइट वेट वेपन है।
सोवियत रूस में बने इस राइफल ने कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी सेना को हराने में बड़ी भूमिका निभाई। इसमें 7.62×54 मिमी का कॉर्टरेज है। 10 राउंड का मैगजीन बॉक्स और 800-900 मीटर रेंज।
स्वीडन रॉकेट लॉन्चर से दुश्मन के कई बंकरों को तबाह कर दिया था। इससे पाकिस्तानी सेना डर गई थी। इससे पाकिस्तानी सेना को भयंकर नुकसान हुआ था।
एनएसवी हैवी मशीन गन, 8. AK-47 असॉल्ट राइफल, 9. ग्रैनेड लॉन्चर, 10. लेजर गाइडेड बम, 11. मिराज-2000 फाइटर जेट जैसे हथियार कारगिल यु्द्ध में भारतीय सेना ने इस्तेमाल किए।