चंद्रयान-3 को अंतरिक्ष तक ISRO का बाहुबली रॉकेट LVM-3 लेकर जाएगा। इसकी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं।
रॉकेट का ईंधन प्रोपेलेंट कहलाता है। पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण सबसे बड़े, भारी अंतरिक्ष यान को बड़े रॉकेट और अधिक प्रोपेलेंट की जरूरत पड़ती है।
न्यूटन के गति के 3 नियम में से एक कहता है कि हर एक एक्शन का समान और अपोजिट रिएक्शन होता है। इसी नियम पर रॉकेट काम करता है।
रॉकेट के उड़ान भरते समय बहुत धुआं, आग, गर्म गैसें फ्यूल जलने से निकलता है। ये जमीन की ओर धकेलता हैं। जवाब में रॉकेट ऊपर विपरीत दिशा में चलता है।
पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण रॉकेट को नीचे खींचता है। पर्याप्त प्रोपेलेंट की जरूरत होती है, ताकि रॉकेट को ऊपर धकेलने वाली ताकत गुरुत्वाकर्षण बल से ज्यादा हो।
एक रॉकेट को कम से कम 17,800 मील यानी 28,646 KMPH की स्पीड की जरूरत होती है,क्योंकि उसे पृथ्वी के घुमावदार पथ, वायुमंडल से ऊपर उड़ना होता है।
विज्ञान के अनुसार, किसी चीज को अंतरिक्ष में भेजने के लिए उसकी स्पीड 11.2 KM प्रति सेकेंड होनी चाहिए, तभी वह चीज पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण क्षेत्र को पार करता है।
जब कोई उपग्रह (Satellite) लॉन्च करना होता है, जो पृथ्वी की परिक्रमा करे तो पृथ्वी से एक खास दूरी पर पहुंचने पर रॉकेट उपग्रह को छोड़कर अलग हो जाता है।
रॉकेट-उपग्रह अलग होने के बाद सैटेलाइट कक्षा में रहता है। रॉकेट से मिली ऊर्जा इसे आगे बढ़ाती, पृथ्वी गुरुत्वाकर्षण खींचता है। इससे संतुलन बनता है। वह परिक्रमा करता है।