इटली के फसानो शहर में दुनिया के 7 सबसे ताकतवर देशों G7 की बैठक चल रही है। भारत से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस मीटिंग में बतौर गेस्ट शामिल हुए हैं।
भारत सबसे पहले 2003 में इस जी7 की बैठक में शामिल हुआ था। तब इसमे शामिल होने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी फ्रांस गए थे। हालांकि, भारत इसका मेंबर नहीं है।
1973 में मिडिल ईस्ट में इजराइल और अरब देशों में जंग छिड़ी थी। इसी बीच अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने इजराइल की मदद के लिए 18 हजार करोड़ रुपए देने का ऐलान किया।
अमेरिका के इस फैसले से फिलिस्तीन का समर्थक देश सऊदी अरब नाराज हो गया। इसके बाद सऊदी अरब ने अमेरिका के साथ ही वेस्टर्न कंट्रीज से बदला लेने का मन बना लिया।
सऊदी अरब ने ऑयल प्रोडक्शन कंट्रीज की बैठक बुलाई, जिसमें तय हुआ कि सभी तेल उत्पादन में भारी कटौती करेंगे। इसके बाद पूरी दुनिया में तेल का संकट गहरा गया।
तेल प्रोडक्शन घटने से उसकी कीमत तीन गुना तक बढ़ गई। इसका सबसे ज्यादा असर अमेरिका और उसके साथी देशों पर पड़ा। वहां महंगाई चरम पर पहुंच गई।
अरब देशों की इस फैसले के बाद 1975 में तेल महंगा होने से परेशान दुनिया के 6 अमीर देश एक साथ आए और इन्होंने एक संगठन बनाया। पहले इसे 'ग्रुप ऑफ सिक्स' यानी G6 नाम दिया।
जी6 में अमेरिका के अलावा जर्मनी, जापान, इटली, ब्रिटेन और फ्रांस शामिल थे। 1976 में इस संगठन में कनाडा भी शामिल हो गया और इसका नाम G7 पड़ा।
1998 में G7 में रूस को भी शामिल किया गया। तब रूस के राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन थे और वो अमेरिका समेत पश्चिमी देशों के समर्थन में थे। इसके साथ ही संगठन का नाम बदलकर G8 कर दिया।
हालांकि, 2014 में क्रीमिया पर रूस के जबरन कब्जा करने के बाद उसे संगठन से बाहर कर दिया गया। इसके साथ ही इसका नाम वापस जी7 हो गया।