पीएम मोदी के लक्षद्वीप दौरे के बाद मालदीव के मंत्रियों की अभद्र टिप्पणी के बाद से ही दोनों देशों के रिश्तों में खटास बढ़ गई है।
इसी बीच, एक्सपर्ट्स का कहना है कि मालदीव को अपने जिन आइलैंड्स को लेकर इतना घमंड है। आनेवाले 60 सालों में वो समंदर में समा सकते हैं।
संयुक्त राष्ट्र (UN) ने चेतावनी दी है कि 2100 तक मालदीव के ज्यादातर आइलैंड पानी में डूब सकते हैं। क्लाइमेट चेंज के चलते पैदा हुए खतरे से मालदीव पर संकट आ सकता है।
माना जा रहा है कि अरब सागर में मालदीव के आइलैंड्स के आसपास पानी का स्तर आधा से 1 मीटर तक बढ़ सकता है। इससे आने वाले 60-70 सालों में वहां की काफी जमीन समुद्र में डूब जाएगी।
NASA की रिपोर्ट के मुताबिक, मालदीव के 1100 से ज्यादा कोरल द्वीप में से 80% समुद्र के जलस्तर से 1 मीटर से भी कम ऊंचाई पर हैं। यानी मालदीव की जमीन समुद्रतल से काफी कम है।
रिपोर्ट के मुताबिक, अगर ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन ऐसे ही चलता रहा तो समुद्र का जलस्तर 1 मीटर तक बढ़ जाएगा। बता दें कि ग्रीन हाउस गैसों का सबसे बड़ा प्रोड्यूसर चीन है।
चीन ने 2019 में 10,065 मिलियन टन CO2 रिलीज की थी। चीन के बाद दूसरे नंबर पर अमेरिका और तीसरे पर भारत है। भारत ने 2654 मिलियन टन कार्बनडाइ ऑक्साइड रिलीज की।
ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू जिसे अपना समझ इतरा रहे हैं, वही चीन उनके देश के लिए बड़ा खतरा पैदा कर सकता है।