इजराइल-हमास की जंग के बीच शुक्रवार को अस्थाई युद्धविराम लागू हो गया है। एक समझौते के तहत सीजफायर कराया गया है। दोनों पक्षों ने अपनी-अपनी शर्तों और जरूरतों पर इस समझौते को माना है।
सीजफायर का शर्त है कि 4 दिनों के युद्धविराम के बदले हमास 50 बंधकों को छोड़ेगा लेकिन बदले में इजरायल को 150 फिलिस्तीनियों को भी जेल से रिहा करना पड़ेगा।
भले ही इजराइल-हमास ने अपनी जरूरतों के हिसाब से समझौते किए हैं लेकिन कूटनीतिक तौर पर इस डील में कतर का सबसे बड़ा रोल है। जिसकी वजह से दुनिया में उसकी चर्चा हो रही है।
विशेषज्ञों के मुताबिक, पिछले कुछ सालों में कतर ने कूटनीतिक लिहाज से कई ऐसे मसले लुझाए हैं, जो उसे टॉप डिप्लोमेसी की कतार में ला खड़ा किया है।
2020 में कतर के दोहा में अमेरिका-तालिबान के बीच एक समझौता हुआ, जिसके बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुला लिया। इसमें कतर की ही मध्यस्थता रही थी।
सितंबर 2023 में कतर ने अमेरिकी और ईरानी कैदियों की रिहाई में मध्यथता निभाई। इसके बाद अक्टूबर में यूक्रेन के उन चार बच्चों को लौटाने के लिए रूस को मनाया था।
कतर तटस्थ देशों की कतार में खड़ा हो गया है। सीरिया में बंधकों की रिहाई, लेबनान में राष्ट्रपति पद के कारण विवाव, जिबूती युद्ध के कैदियों की रिहाई में भी कतर की अहम भूमिका रही।
कतर-हमास के रिश्ते करीबी हैं। इजराइली सैनिकों से बचने हमास नेता कतर में रहते हैं। 2012 में हमास ने कतर में अपना राजनीतिक दफ्तर भी खोला था। इजरायल से भी उसके राजनयिक संबंध हैं।
कतर में हमास के दूतावास दफ्तर को बंद करने अमेरिका ने काफी दबाव बनाया लेकिन करीबी साझेदार होने बावजूद कतर ने उसकी बात नहीं मानी और कहा वह हमास से बातचीत का रास्ता खुला रखना चाहता है