सार

दक्षिण सूडान पूर्व-मध्य अफ्रीका का एक ऐसा देश है, जो वर्षों से गृहयुद्ध की आग में झुलस रहा है। यहां के लाखों लोगों को यूनाइडेट नेशन्स के कैम्पों में जीवन गुजारना पड़ रहा है। 

हटके डेस्क। दक्षिण सूडान पूर्व-मध्य अफ्रीका का एक ऐसा देश है, जो वर्षों से गृहयुद्ध की आग में झुलस रहा है। यहां के लाखों लोगों को यूनाइडेट नेशन्स के कैम्पों में जीवन गुजारना पड़ रहा है। साल 2011 में यह रिपब्लिक ऑफ सूडान से आजादी हासिल कर एक स्वतंत्र देश बना, लेकिन इसके बाद ही यहां बड़े पैमाने पर जातीय हिंसा भड़क गई। यहां के लोग बहुत ही कठिनाई भरी जिंदगी बिताने पर मजबूर हैं। हमेशा उनकी जान पर खतरा बना रहता है। यहां के बोर शहर के पास एक गांव में रहने वाली 25 साल की नायकेना की कहानी भी कुछ ऐसी ही है, जिसे प्रेग्नेंसी की हालत में भारी हिंसा के बीच भाग कर अपनी जान बचानी पड़ी। किसी तरह वह नजदीकी शहर बोर पहुंची, जहां उसने एक कैम्प में बच्चे को जन्म दिया।

दो जुड़वां बच्चों की है मां
बता दें कि गृहयुद्ध की शुरुआत के पहले दूसरे लोगों की तरह ही नायकेना भी एक अच्छी जिंदगी बिता रही थी। उसके पति की अच्छी जॉब थी। उसे दो जुड़वां बच्चे हुए। एक लड़का और एक लड़की। लेकिन गृहयुद्ध शुरू होते ही हालात बुरे होते चले गए। एक रात जब वह अपने गांव के घर में सो रही थी, अचानक उसने गोलीबारी की आवाज सुनी। गोलीबारी के साथ ही लोगों की चीख-पुकार की आवाजें भी सुनाई पड़ रही थीं। गांव में आग लगा दी गई थी। घर जल रहे थे। नायकेना जान बचाने के लिए अपने बच्चों को लेकर भागी।

पति से भी संपर्क टूट गया
इस दौरान, नायकेना का पति से भी संपर्क टूट गया। भागते-भागते किसी तरह वह बोर पहुंची, जहां एक कैम्प में उसे शरण मिली। वह अपनी प्रेग्नेंसी के लास्ट स्टेज में थी। कैम्प में ही उसने बच्चे को जन्म दिया। लेकिन इस बीच, वह अपना फूड राशन कार्ड खो चुकी थी। इसके बिना उसे खुद और अपने दोनों जुड़वां बच्चों के लिए खाना मिलने में मुश्किल होती। इसके बाद उसने साउथ सूडान की राजधानी जुबा जाने का निर्णय लिया। यह उसकी अच्छी किस्मत थी कि वहां एक कैम्प में उसका भाई मिल गया। इधर, उसके दोनों बच्चों की हालत बहुत खराब हो रही थी। कुपोषण के कारण वे बहुत ही कमजोर हो गए थे।

यूनिसेफ की क्लिनिक में हुआ बच्चों का इलाज
जुबा में नायकेना के बच्चों का इलाज यूनिसेफ की क्लिनिक में शुरू हुआ। धीरे-धीरे उनकी हालत में सुधार हुआ। उनके लिए यूनिसेफ के कैम्प में ढंग का भोजन उपलब्ध कराया गया। बता दें कि गृहयुद्ध से बदहाल हो चुके साउथ सूडान में 10 लाख से भी ज्यादा बच्चे गंभीर कुपोषण के शिकार हैं। जनवरी, 2017 में यूनिसेफ ने वहां गंभीर कुपोषण के शिकार बच्चों के इलाज के लिए क्लिनिक खोले और हजारों बच्चों की जान बचाई। लेकिन हिंसा के ग्रस्त इस देश में यूनिसेफ के लिए भी काम कर पाना आसान नहीं है। बहरहाल, यूनिसेफ की कोशिश है कि जहां तक संभव हो सके, क्लिनिक खोल कर कुपोषण के शिकार बच्चों की जान बचाई जाए और उनके लिए ढंग के भोजन का प्रबंध किया जा सके।