सार

आज पूरी दुनिया में रविवार का दिन साप्ताहिक अवकाश के रूप में मनाया जाता है। भारत में पहले कामगारों के लिए कोई साप्ताहिक अवकाश नहीं था।
 

नई दिल्ली। दुनिया भर में रविवार को साप्ताहिक अवकाश मनाया जाता है, लेकिन भारत में पहले कामगारों के लिए किसी दिन कोई अवकाश नहीं था। उन्हें सप्ताह में रोज काम करना होता था। रविवार को ब्रिटिश अफसर और दूसरे उच्चाधिकारी छुट्टी मनाते थे, लेकिन मजदूरों के लिए छुट्टी की कोई व्यवस्था नहीं थी। 

साप्ताहिक छुट्टी के लिए उठाई आवाज
उस समय श्री नारायण जी मेघाजी लोखंडे मिल के मजदूरों के नेता थे। उन्होंने अंग्रेज अधिकारियों से भारतीय कामगारों को भी सप्ताह में एक दिन छुट्टी देने को कहा। उनका कहना था कि पूरे हफ्ते काम करने के बाद एक दिन का अवकाश दिया जाना सबके लिए जरूरी है। उन्होंने कहा कि रविवार खंडोबा देवता का भी दिन है, इसलिए इस दिन अवकाश दिया जाना चाहिए। 

अंग्रेजों ने अस्वीकार कर दिया
अंग्रेज मिल मालिकों और अधिकारियों ने सप्ताह में रविवार को अवकाश दिए जाने के लोखंडे के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। उनका कहना था कि मजदूरों को अवकाश नहीं दिया जा सकता। उन्हें अवकाश देने पर उत्पादन का काम प्रभावित होगा।

लोखंडे ने जारी रखा संघर्ष
प्रस्ताव अस्वीकार कर दिए जाने के बाद भी लोखंडे निराश नहीं हुए और कामगारों को रविवार को अवकाश दिलाने के के लिए उन्होंने संघर्ष जारी रखा। आखिर अंग्रेजों को उनकी मांग के आगे झुकना पड़ा और 7 साल के लंबे संघर्ष के बाद 10 जून, 1890 को ब्रिटिश सरकार ने रविवार को छुट्टी का दिन घोषित किया। 

माने जाते हैं ट्रेड यूनियन आंदोलन के जनक
लोखंडे को भारत में ट्रेड यूनियन आंदोलन का जनक भी माना जाता है। उन्होंने पहली बार कपड़ा मिल मजदूरों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करने और उन्हें संगठित करने की कोशिश की। भारत सरकार ने साल 2005 में उनके सम्मान में उन पर एक डाक टिकट भी जारी किया।