सार

 रूस से बेहद खफा अमेरिका ने भारत के साथ काम करने की इच्छा जाहिर की है, लेकिन इसके लिए रूस के प्रति नजरिया बदलने का मुद्दा उठाया है। व्हाइट हाउस ने कहा है कि बाइडेन प्रशासन रूस के संक्रमण से दूर यानी अलग होकर भारत के साथ काम करने के लिए प्रतिबद्ध है। 

वाशिंगटन(Washington). रूस से बेहद खफा अमेरिका ने भारत के साथ काम करने की इच्छा जाहिर की है, लेकिन इसके लिए रूस के प्रति नजरिया बदलने का मुद्दा उठाया है। व्हाइट हाउस ने कहा है कि बाइडेन प्रशासन रूस के संक्रमण से दूर यानी अलग होकर भारत के साथ काम करने के लिए प्रतिबद्ध है। व्हाइट हाउस ने कहा कि ऐसे कई देश हैं, जिन्होंने यह अच्छे से सीखा है कि मास्को ऊर्जा या सुरक्षा का एक विश्वसनीय स्रोत नहीं है। पढ़िए और क्या बोला अमेरिका?

अमेरिका ने कहीं ये बातें
अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता नेड प्राइस(Ned Price) ने मंगलवार को यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि जब रूस के साथ भारत के संबंधों की बात आती है, तो अमेरिका ने लगातार यह बात कही है कि यह एक ऐसा रिश्ता है, जो दशकों के दौरान विकसित और मजबूत हुआ था। वास्तव में यह शीत युद्ध के दौरान ऐसे समय में डेवलप हुआ था, जब जब संयुक्त राज्य अमेरिका  भारत के साथ आर्थिक भागीदार, सुरक्षा भागीदार और सैन्य साझेदार बनने की स्थिति में नहीं था। अब यह बदल गया है। यह पिछले 25 या इतने वर्षों में बदल गया है। यह वास्तव में एक विरासत है। एक द्विदलीय विरासत है जिसे इस देश ने पिछली तिमाही शताब्दी के दौरान हासिल किया है। राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश का प्रशासन वास्तव में इसे लागू करने वाला पहला था। प्राइस ने कहा कि अमेरिका ने हर फील्ड-इकोनॉमी, सिक्योरिटी और मिलिट्री कार्पोरेशन में भारत के साथ अपनी पार्टनरशिप को गहरा करने की कोशिश की है। प्राइस ने कहा कि हालांकि हम हमेशा से स्पष्ट रहे हैं, यह रातों-रात नहीं होगा। भारत एक बड़ा देश है, एक विशाल देश है, एक बड़ी अर्थव्यवस्था है जिसकी मांग की जरूरत है।

भारत के रूस से तेल खरीदी के सवाल पर?
रूस से भारत द्वारा तेल की खरीद के सवाल पर प्राइस ने कहा कि अमेरिका यह भी स्पष्ट कर चुका है कि अब रूस के साथ हमेशा की तरह व्यापार करने का समय नहीं है। यह दुनिया भर के देशों पर निर्भर है कि वे रूस के साथ उन आर्थिक संबंधों को कम करने के लिए क्या कर सकते हैं। यह सामूहिक हित में है। यह दुनिया भर के देशों के द्विपक्षीय हित में भी है। निश्चित रूप से समय के साथ, रूसी ऊर्जा पर निर्भरता को कम करने के लिए।

प्राइस ने कहा कि ऐसे कई देश रहे हैं, जिन्होंने यह अच्छे से सीखा है कि रूस ऊर्जा का एक विश्वसनीय स्रोत नहीं है। रूस सिक्योरिटी असिस्टेंस का विश्वसनीय सप्लायर नहीं है। रूस किसी भी भूमिका में भरोसेमंद नहीं है। इसलिए यह न केवल यूक्रेन के हित में है, यह न केवल क्षेत्र के हित में, सामूहिक हित में है कि भारत समय के साथ रूस पर अपनी निर्भरता कम करे। बल्कि यह भारत के अपने द्विपक्षीय हितों में भी है।

प्राइस ने कहा कि पिछले कुछ महीनों में अमेरिका के भारत के साथ कई उच्च स्तरीय संपर्क रहे हैं। इस सप्ताह की शुरुआत में सोमवार को उप सचिव शर्मन वेंडी ने भारतीय विदेश सचिव विनय क्वात्रा से मुलाकात की और अमेरिका-भारत संबंधों के बारे में व्यापक चर्चा की। उन्होंने बताया कि विदेश मंत्री टोनी ब्लिंकन ने कुछ महीने पहले यहां विदेश मंत्री एस जयशंकर से मुलाकात की थी। इस बीच कई बार बातचीत भी हो चुकी है। 

प्राइस ने कहा कि हमने रूस में विदेश मंत्री जयशंकर से जो मैसेज सुना, वह कुछ मायनों में संयुक्त राष्ट्र में प्रधान मंत्री मोदी के बयान से भिन्न नहीं था, जब उन्होंने स्पष्ट किया कि यह युद्ध का युग नहीं है। भारत ने फिर से कहा है कि वह इस युद्ध के खिलाफ खड़ा है। वह बातचीत के जरिये समस्या का हल चाहता है। वह डिप्लोसी देखना चाहता है, वह इस अनावश्यक रक्तपात का अंत देखना चाहता है। प्राइस ने रूस को नसीहत दी कि वो मोदी के उस संदेश को दुनिया भर के देशों के जरिये सुने। यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है कि रूस भारत जैसे देशों से उस संदेश को सुनें, जो पड़ोसी हैं, जिनके पास आर्थिक, राजनयिक, सामाजिक और राजनीतिक ताकत है। प्राइस ने कहा कि  विदेश मंत्री जयशंकर ने भी यही संदेश दिया है।

बता दें कि भारत के विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने मंगलवार को रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव से मुलाकात की है। जयशंकर ने यूक्रेन-रूस युद्ध पर कहा कि दोनों देशों को बातचीत के जरिए ही कोई रास्ता निकालना चाहिए। युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता।

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