सार
हाल के कुछ सालों में चीन भारत को कई तरह से घेरने की तैयारी में लगा हुआ है। चीन को लगता है कि भारत जिस तेजी से आगे बढ़ रहा है कही न आने वाले समय में भारत उसे पीछे छोड़ दे।
भारत और चीन के रिश्ते। भारत और चीन दुनिया के दो सबसे अधिक आबादी वाले देश है। दोनों देशों का नाम एशिया के सबसे शक्तिशाली देशों में आता है। इसकी वजह से भारत और चीन के बीच सीमा मुद्दों पर ऐतिहासिक प्रतिद्वंद्विता रही है। इसका नतीजा ये रहा है कि साल 1962 में दोनों देशों के बीच युद्ध भी हो चुका है, जिसमें भारत को हार का सामना करना पड़ा था। हालांकि, इसके बावजूद भारत ने हलिया सालों में ड्रैगन को सीमा-विवाद के मुद्दों पर मुंहतोड़ जवाब दिया है। वहीं भारत चीन के क्षेत्रीय प्रतिनिधि के रूप में उभरा है। भारत चीन को अपनी संप्रभुता के लिए भी खतरा मानता है।
हाल के कुछ सालों में चीन भारत को कई तरह से घेरने की तैयारी में लगा हुआ है। उन्हें लगता है कि हम जिस तेजी से आगे बढ़ रहा है कही न आने वाले समय में उसे पीछे छोड़ दे। इसलिए चीन आए दिन हमारे पड़ोसी देशों के मामलों में घुसकर काम बिगाड़ने का काम करता है। इसका ताजा उदाहरण भारत और मालदीव के रिश्तों में आई खटास से देखा जा सकता है।
मालदीव में जब से मोहम्मद मुइज्जु की सरकार बनी है, तब से उनका का झुकाव चीन की तरफ हो गया। मुइज्जु ने भी राष्ट्रपति बनने के बाद सबसे पहले चीन का दौरा किया था। हालांकि, मालदीव की हमेशा से परंपरा रही है कि उनके देश का राष्ट्रपति पहले भारत का दौरा करते थे, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ।
चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स नीति
चीन भारत को घेरने के लिए वो हर काम कर रहा है, जो उसके के लिए जरूरी है। बीते कुछ सालों में चीन के संबंध पाकिस्तान के काफी गहरे हो गए हैं। वो पाकिस्तान में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (CPEC) की प्रमुख परियोजना की मदद से भारत की सीमा पर अपनी पहुंच बनाने का काम कर रहा है। चीन ने क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए BRI परियोजना के तहत विभिन्न दक्षिण एशियाई देशों में बुनियादी ढांचे और ऊर्जा क्षेत्र में निवेश किया है। चीन की नरम छवि और हस्तक्षेप न करने की नीति ने संघर्षरत क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं को इसे अपनी आर्थिक और बुनियादी ढांचागत जरूरतों को पूरा करने के लिए उपयुक्त माना है।
चीन साउथ चाइना सी में भी अपना दबदबा बढ़ाने के लिए काम करता है। इसकी वजह से भारत ने अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर क्वाड का निर्माण किया। इस ग्रुप का एक ही मकसद है चीन के प्रभाव में साउथ चाइना सी में कम करना। चीन का मकसद है कि वो भारत को स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स की रणनीति के माध्यम से अलग करना है। वो भारत के आस-पास के पड़ोसी देशों के बंदरगाहों, रोड नेटवर्क के जरिए घेरने की तैयारी में लगा हुआ है।
भारत के पड़ोसी देशों में चीन की दखल
भारत के पूर्वी पड़ोसी बांग्लादेश ने भी हाल के वर्षों में चीन के साथ अपने संबंध मजबूत किए हैं। बांग्लादेश की विदेश नीति में बदलाव तब स्पष्ट हुआ जब देश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इतिहास में पहली बार पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान को एक पत्र भेजा। बांग्लादेश की विदेश नीति में इस बदलाव के पीछे बांग्लादेश पर चीनी प्रभाव प्रमुख कारण था, क्योंकि बांग्लादेश इसका सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। इसके अलावा, बाद में BRI परियोजना के लिए भारी निवेश प्राप्त हुआ है।
हंबनटोटा बंदरगाह और जिबूती में चीन की सैन्य उपस्थिति ने क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव के बारे में भारत की चिंताओं को बढ़ा दिया है। चीन ने 2018 से पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, मालदीव और नेपाल में 150 बिलियन डॉलर से अधिक का निवेश किया है। नेपाल ने भी पिछले वर्षों में चीन के प्रति एक महत्वपूर्ण झुकाव प्रदर्शित किया है। हालांकि, दोनों क्षेत्रीय दिग्गजों पर अपनी आर्थिक निर्भरता को देखते हुए, देश अभी तक किसी भी सुरक्षा गठबंधन का हिस्सा नहीं है।
चीन की हिंद महासागर में उपस्थिति
चीन ने हिंद महासागर में भी अपनी उपस्थिति बढ़ा दी है, जिससे भारत को और खतरा हो गया है। दक्षिण एशिया में चीन की इन तमाम राजनीतिक चालों के बीच भारत इस क्षेत्र में तेजी से अलग-थलग पड़ता जा रहा है। हालांकि देश आर्थिक रूप से बढ़ रहा है, फिर भी दक्षिण एशियाई देशों, विशेषकर नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, मालदीव और पाकिस्तान में भारत विरोधी भावना बढ़ रही है।
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