सार

पाकिस्तान में आई विनाशकारी बाढ़(devastating floods) ने लाखों लोगों को बेघर कर दिया है। ऐसी बाढ़ पिछले 10 साल में पहली बार देखी गई है। मुसीबत की इस घड़ी में पाकिस्तान में बचे मुट्ठीभर हिंदू अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों को भूलकर मुसलमानों की मदद के लिए आगे आए हैं।
 

कराची. पहली तस्वीर बलूचिस्तान के कच्छी जिले में बसे जलाल खान नामक एक छोटे से गांव में स्थित एक ऐतिहासिक मंदिर में शरण लिए मुसलमानों की है। यह गांव अभी भी बाढ़ से जूझ रहा है, जिसने घरों को तबाह कर दिया। बाढ़ ने बड़े पैमाने पर तबाही मचाई। नारी, बोलन, और लहरी नदियों में बाढ़ के कारण गांव बाकी प्रांत से कट गया है, जिससे दूरदराज के इलाके में रहने वाले लोग फंसे हुए हैं। इस कठिन समय में स्थानीय हिंदू समुदाय ने बाबा माधोदास मंदिर के दरवाजे बाढ़ प्रभावित लोगों और उनके जानवरों के लिए खोल दिए हैं। पढ़िए पूरी कहानी...

मंदिर ऊंचाई पर होने से नहीं पहुंचा बाढ़ का पानी
पाकिस्तान में आई विनाशकारी बाढ़(devastating floods) ने लाखों लोगों को बेघर कर दिया है। ऐसी बाढ़ पिछले 10 साल में पहली बार देखी गई है। मुसीबत की इस घड़ी में पाकिस्तान में बचे मुट्ठीभर हिंदू अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों को भूलकर मुसलमानों की मदद के लिए आगे आए हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार बाबा माधोदास एक पूर्व-विभाजन हिंदू दरवेश (संत) थे, जो क्षेत्र के मुसलमानों और हिंदुओं में समान रूप से पूज्यनीय थे। लोग उनकी समान रूप से मदद(cherished) करते थे। भाग नारी तहसील के रहने वाले इल्ताफ बुजदार बताते हैं कि बाबा ऊंट की सवारी करते थे। बुजदार मंदिर में अकसर आते रहते हैं। पाकिस्तान के मीडिया डॉन ने इस बारे में एक रिपोर्ट पब्लिक की है।

बुज़दार के मुताबिक, उनके माता-पिता द्वारा सुनाई गई कहानियों के अनुसार, संत ने धार्मिक सीमाओं को पार कर लिया था। वह लोगों के बारे में उनकी जाति और पंथ के बजाय मानवता के चश्मे से सोचते थे। बलूचिस्तान के हिंदू उपासकों(Hindu worshippers) द्वारा अपने पूजा स्थल ऊंचाई वाली जगहों पर बनाए जाते रहे हैं। ये कंक्रीट से बने होते हैं और एक बड़े क्षेत्र को कवर करते हैं। बाबा माधोदास मंदिर भी ऐसा ही है। इसलिए यह बाढ़ के पानी से अपेक्षाकृत सुरक्षित रहता है। यह बाढ़ प्रभावित लोगों के लिए एक अभयारण्य या कहें शेल्ट होम की तरह काम करता है। जलाल खान में हिंदू समुदाय के अधिकांश सदस्य रोजगार और अन्य अवसरों के लिए कच्छी के अन्य शहरों में चले गए हैं, लेकिन कुछ परिवार इसकी देखभाल के लिए मंदिर परिसर में रहते हैं। भाग नारी तहसील के एक दुकानदार 55 वर्षीय रतन कुमार वर्तमान में मंदिर के प्रभारी हैं। उनके मुताबिक, मंदिर में 100 से अधिक कमरे हैं, क्योंकि हर साल बलूचिस्तान और सिंध से बड़ी संख्या में लोग तीर्थयात्रा के लिए यहां आते हैं।

करीब 300 मुसलमानों ने ली है शरण
ऐसा नहीं है कि मंदिर ने बाढ़ा का खामियाजा नहीं भुगता है। रतन के बेटे सावन कुमार ने बताया कि कुछ कमरे बाढ़ से क्षतिग्रस्त हो गए हैं, लेकिन कुल मिलाकर ढांचा सुरक्षित रहा। कम से कम 200-300 लोगों (ज्यादातर मुस्लिम) ने अपने पशुओं के साथ मंदिर परिसर में शरण ली है। हिंदू परिवार उनकी देखभाल कर रहे हैं। शुरुआत में जब बाढ़ चरम पर थी, तब यह क्षेत्र जिले के बाकी हिस्सों से पूरी तरह कट गया था। तब विस्थापितों को सेना ने हेलीकॉप्टर से राशन उपलब्ध कराया था, लेकिन जब से इन लोगों ने मंदिर में शरण ली है, हिंदू समुदाय ही उन्हें खिला-पिला रहा है।

लाउडस्पीकर पर किया गया मंदिर में आकर रहने की ऐलान 
पाकिस्तान इसरार मुघेरी जलाल खान में एक डॉक्टर हैं। यहां आने के बाद से ही उन्होंने मंदिर के अंदर मेडिकल कैंप लगा रखा है। स्थानीय हिंदुओं द्वारा लाउडस्पीकर पर घोषणाएं की गईं कि मुसलमान मंदिर में आकर रह सकते हैं। मंदिर में शरण लेने वालों का कहना है कि इस मुश्किल घड़ी में उनकी सहायता के लिए आगे आने और उन्हें भोजन और आश्रय देने के लिए वे स्थानीय समुदाय के ऋणी हैं। स्थानीय लोगों के लिए, बाढ़ से बचे लोगों के लिए मंदिर खोलना मानवता और धार्मिक सद्भाव का प्रतीक है, जो सदियों से उनकी परंपरा रही है।

बता दें कि मानसून की बारिश और उसके बाद आई बाढ़ ने 14 जून से 9 सितंबर के बीच देश भर में 1,396 लोगों की जान ले ली और 12,728 घायल हो गए। 30 मिलियन से अधिक लोग विस्थापित(displaced) भी हुए हैं। सिंध अब तक सबसे ज्यादा प्रभावित प्रांत है, जहां सबसे ज्यादा मौतें और घायल हुए हैं। देश भर में हुई 1,396 मौतों में से सिंध में 578 के लोग हैं। नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथारिटी(NDMA) के सबसे हालिया अपडेट के अनुसार, सिंध में 8,321 घायल हुए हैं, जो देशभर में 12,728 हैं।

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