सार
भारत विविधताओं का देश हैं। यहां एक ही त्योहार विभिन्न प्रांतों में अलग-अलग परंपराओं के साथ मनाया जाता है। होली (Holi 2022) भी एक ऐसा ही त्योहार है। होली पर कही जुलूस निकाले जाते हैं तो कहीं कोई विशेष व्यंजन बनाया जाता है।
उज्जैन. उत्तराखंड में गीत-संगीत की बैठकें होती हैं तो ब्रज धाम में खेली जाने वाली लट्ठमार होली भी दुनियाभर में प्रसिद्ध है। होली का ऐसा ही एक अनोखा रूप सिक्खों के पवित्र धर्म स्थल श्री आनंदपुर साहिब (Sri Anandpur Sahib Gurdwara) में भी देखने को मिलता है। यहां निहंग शस्त्रों के माध्यम से शक्ति प्रदर्शन करते हैं। इस दिन यहां विशाल लंगर का भी आयोजन किया जाता है, जिसमें हजारों लोग भोजन पाते हैं। इस उत्सव को होला मोहल्ला (Hola Mohalla) कहते हैं। आगे जानिए इससे जुड़ी खास बातें…
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पौरूष का प्रतीक है होला मोहल्ला
सिक्खों के पवित्र धर्मस्थान श्री आनंदपुर साहिब में होली के अगले दिन से लगने वाले मेले को होला मोहल्ला कहते हैं। सिक्खों के लिये यह धर्मस्थान बहुत ही महत्वपूर्ण है। यहां पर होली पौरुष के प्रतीक पर्व के रूप में मनाई जाती है। इसीलिए दशम गुरू गोविंदसिंहजी ने होली के लिए पुल्लिंग शब्द होला मोहल्ला का प्रयोग किया। गुरुजी इसके माध्यम से समाज के दुर्बल और शोषित वर्ग की प्रगति चाहते थे।
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पंज प्यारे करते हैं जुलूस का नेतृत्व
होला मोहल्ला का उत्सव आनंदपुर साहिब में छ: दिन तक चलता है। इस अवसर पर, भांग की तरंग में मस्त घोड़ों पर सवार निहंग, हाथ में निशान साहब उठाए तलवारों के करतब दिखा कर साहस, पौरुष और उल्लास का प्रदर्शन करते हैं। पंज प्यारे जुलूस का नेतृत्व करते हुए रंगों की बरसात करते हैं और जुलूस में निहंगों के अखाड़े नंगी तलवारों के करतब दिखते हुए बोले सो निहाल के नारे बुलंद करते हैं।
होता है विशाल लंगर का आयोजन
होला मोहल्ला उत्सव के दौरान आनंदपुर साहिब की सजावट की जाती है और विशाल लंगर का आयोजन किया जाता है। कहते हैं गुरु गोविंद सिंह ने स्वयं इस मेले की शुरुआत की थी। यह जुलूस हिमाचल प्रदेश की सीमा पर बहती एक छोटी नदी चरण गंगा के तट पर समाप्त होता है।
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