सार
दुनिया में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है, जिसने कभी-न-कभी किसी का बुरा नहीं किया हो। ऐसे लोग सोचते हैं कि उन्हें कोई देख नहीं रहा है। लेकिन जब उनकी ये बातें लोगों को पता चलती है तो समाज में उनका मान-सम्मान कम हो जाता है।
उज्जैन. जो लोग दूसरों के साथ बुरा करते हैं वे घृणा के पात्र तो बनते ही हैं, साथ ही ऐसे लोगों को समाज में अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता। Asianetnews Hindi Life Management सीरीज चला रहा है। इस सीरीज के अंतर्गत आज हम आपको ऐसा प्रसंग बता रहे हैं जिसका सार यही है कि हमें कोई ऐसा काम नहीं करना चाहिए, जिससे हमारा मान-सम्मान कम हो।
जब डाकू पहुंचा संत के पास
किसी जंगल में एक डाकू रहता था। वह लोगों से लूट-पाट करता था। एक दिन जंगल में एक एक संत अपने साथियों के साथ गुजर रहे थे। डाकू ने जब उन्हें देखा तो उनके पास गया और बोला कि ” महाराज, मैं अपने जीवन से परेशान हो गया हूं। जाने कितनों को मैंने लूटकर दुखी किया है, उनके घरों को तबाह किया है। मुझे कोई रास्ता बताइए, जिससे मैं इस बुराई से बच सकूं।”
संत ने डाकू से कहा कि ‘' तुम बुरे काम करना छोड़ दो, इससे तुम्हारे मन का बोझ हल्का हो जाएगा।”
डाकू ने संत से कहा, ‘'ठीक है महाराज, मैं कोशिश करूंगा कि अब कोई गलत काम न करूं।”
कुछ दिनों बाद डाकू फिर संत से मिला और बोला कि “मैंने बुराई को छोड़ने की बहुत कोशिश की, लेकिन छोड़ नहीं पाया। अपनी आदत से मैं लाचार हूं। मुझे कोई दूसरा उपाय बताइए।”
संत ने थोड़ी देर सोचा और फिर बोले कि “अच्छा, ऐसा करो कि तुम्हारा जो भी करने का मन हो, वो करो और बाद में उसे लोगों को बता दो।”
डाकू को संत की बात अच्छी लगी, उसने सोचा कि ये तो बहुत ही आसान काम है, जो भी बुरे काम करो, उसे दूसरों के सामने जाकर कहना ही तो है।
कुछ दिनों के बाद डाकू फिर से संत के पास आया और बोला “हे महात्मा। आपने मुझे जो काम बताया था, वो सुनने में बहुत आसान लग रहा था, लेकिन करने में बड़ा कठिन निकला।”
संत ने पूछा “वो कैसे?”
डाकू ने बताया कि “अपनी स्वयं की बुराई लोगों के सामने करना और लोगों का आपसे घृणा करना बहुत ही तकलीफदेह होता है। इसलिए मैंने प्रण किया है कि अब में कोई ऐसा काम नहीं करूंगा, जिसे बताने लोगों को बताने में मुझे कठिनाई हो।”
निष्कर्ष ये है कि…
हमें अपने जीवन में ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए, जिसे लोगों को बताने में हमें शर्मिंदगी उठानी पड़े। ऐसा करने से समाज में हमारा मान-सम्मान कम होता है और हम घृणा के पात्र बनते हैं।
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