सार
कुछ लोग अक्सर दूसरों की परेशानी का मजाक उड़ाते हैं, उन्हें ऐसा लगता है कि दूसरों की समस्या सिर्फ एक दिखावा मात्र है, इसके अलावा कुछ नहीं। जब वही परिस्थिति उनके साथ होती है तो उन्हें अहसास होता है कि ये समस्या इतनी विकट है।
उज्जैन. एक कहावत प्रसिद्ध है- जिसके पैर न हुई बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई। अर्थ ये है कि पैर के छालों के दर्द का अहसास उसे ही हो सकता है, जिसके साथ कभी ऐसा हुआ हो। Asianetnews Hindi Life Management सीरीज चला रहा है। इस सीरीज के अंतर्गत आज हम आपको ऐसा प्रसंग बता रहे हैं जिसका सार यही है कि हमें दूसरों की तकलीफ का कारण कभी नहीं बनना चाहिए।
जब नाव में बैठा कुत्ता करने लगा उछल-कूद
किसी नगर में एक सेठ रहता था। वो अपने कुत्ते को हमेशा अपने साथ रखता था। एक बार सेठ को दूसरे गांव में जाने के लिए नाव में बैठना पड़ा। सेठ ने कुत्ते को भी अपने साथ नाव में बैठा लिया। कुत्ता पहली बार नाव में बैठा था। नाव नदी में तेजी से आगे बढ़ रही थी और हिलती नाव की वजह से कुत्ता असहज होता जा रहा था। चारों ओर पानी देखकर कुत्ता उछल-कूद करने लगा।
नाव में बैठे सभी लोग कुछ देर तक को चुपचाप बैठे रहे, लेकिन बहुत देर तक कुत्ता ऐसा करता रहा तो सभी को डर लगने लदा कि कुत्ते की उछल-कूद की वजह से नाव डूब सकती है। उन्होंने सेठ से कुत्ते को रोकने के लिए किया। लेकिन कुत्ता सेठ की बात मानने को भी तैयार नहीं था।
कुत्ते की उछल-कूद और बढ़ने लगी तो सभी और डर गए। उसी नाव में एक बुद्धिमान संत भी बैठे थे। संत ने सेठ से कहा कि “अगर आप आज्ञा दें तो मैं इसे कुछ ही देर में ठीक कर सकता हूं।”
सेठ ने कहा “जैसा आपको उचित लगे, वैसा कीजिए, नहीं तो ये कुत्ता तो आज हम सभी को डूबाकर छोड़ेगा।”
संत उठे और उन्होंने कुत्ते को पकड़कर नदी में दूर फेंक दिया। कुत्ता अपनी जान बचाने के लिए तेजी से हाथ-पैर चलाने लगा। कुत्ता जैसे-तैसे तैरकर नाव में चढ़ने की कोशिश करने लगा। उसे मृत्यु का डर सताने लगा। जैसे ही कुत्ता नाव के नजदीक आया संत ने उसे पकड़कर नाव में बैठा लिया।
अब कुत्ता चुपचाप जाकर अपने मालिक के पास बैठ गया। कुत्ते को देखकर सभी हैरान रह गए। जो कुत्ता देरी देर पहले उछल-कूद कर रहा था, वो एकदम इतना शांत हो गया। सेठ ने संत से इसका कारण पूछा। संत ने कहा कि “जब कुत्ते को पानी में फेंका, तब इसे समझ आ गया कि उसकी जान खतरे में है। बस ये बात समझते ही वह चुपचाप जाकर बैठ गया, क्योंकि जब तक परेशानी अपनी न हो कोई उसे समझता नहीं है। ”
निष्कर्ष ये है कि…
जब तक हम खुद किसी मुसीबत में नहीं फंसते, दूसरी की परेशानियों का अनुमान भी नहीं लगा पाते। इसीलिए हमें दूसरों की समस्याओं को भी समझना चाहिए और ये प्रयास करना चाहिए कि हमारे कारण किसी दूसरे को परेशानी न हो।
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