भीष्म अष्टमी 20 फरवरी को, गुणवान संतान के लिए इस दिन करना चाहिए श्राद्ध और तर्पण

20 फरवरी, शनिवार को भीष्म अष्टमी है। धर्म शास्त्रों के अनुसार, इस दिन भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने पर अपने प्राण त्यागे थे। उनकी स्मृति में यह व्रत किया जाता है।

Asianet News Hindi | Published : Feb 19, 2021 3:48 AM IST

उज्जैन. इस दिन प्रत्येक हिंदू को भीष्म पितामह के निमित्त कुश, तिल व जल लेकर तर्पण करना चाहिए, चाहे उसके माता-पिता जीवित ही क्यों न हों। इस व्रत के करने से मनुष्य सुंदर और गुणवान संतान प्राप्त करता है-

माघे मासि सिताष्टम्यां सतिलं भीष्मतर्पणम्।
श्राद्धच ये नरा: कुर्युस्ते स्यु: सन्ततिभागिन:।।
(हेमाद्रि)

महाभारत के अनुसार जो मनुष्य माघ शुक्ल अष्टमी को भीष्म के निमित्त तर्पण, जलदान आदि करता है, उसके वर्षभर के पाप नष्ट हो जाते हैं-

शुक्लाष्टम्यां तु माघस्य दद्याद् भीष्माय यो जलम्।
संवत्सरकृतं पापं तत्क्षणादेव नश्यति।।

भीष्म अष्टमी की व्रत विधि

- भीष्म अष्टमी की सुबह स्नान आदि करने के बाद यदि संभव हो तो किसी पवित्र नदी या सरोवर के तट पर स्नान करना चाहिए।
- यदि नदी या सरोवर पर न जा पाएं तो घर पर ही विधिपूर्वक स्नानकर भीष्म पितामह के निमित्त हाथ में तिल, जल आदि लेकर अपसव्य (जनेऊ को दाएं कंधे पर लेकर) तथा दक्षिणाभिमुख होकर निम्नलिखित मंत्रों से तर्पण करना चाहिए-
वैयाघ्रपदगोत्राय सांकृत्यप्रवराय च।
गंगापुत्राय भीष्माय सर्वदा ब्रह्मचारिणे।।
भीष्म: शान्तनवो वीर: सत्यवादी जितेन्द्रिय:।
आभिरभिद्रवाप्नोतु पुत्रपौत्रोचितां क्रियाम्।।
- इसके बाद पुन: सव्य (जनेऊ को बाएं कंधे पर लेकर) होकर इस मंत्र से गंगापुत्र भीष्म को अर्घ्य देना चाहिए-
वसूनामवताराय शन्तरोरात्मजाय च।
अर्घ्यंददामि भीष्माय आबालब्रह्मचारिणे।।

ऐसे निकले थे भीष्म पितामाह के प्राण

भीष्म पितामह 58 दिनों तक बाणों की शैया पर रहे। युद्ध समाप्त होने के बाद जब सूर्य उत्तरायण हुआ तब उन्होंने अपने प्राणों का का त्याग किया। महाभारत के अनुसार, भीष्म पितामाह ने योगक्रिया के द्वारा अपने प्राण छोड़े थे। भीष्म अपने प्राणों को प्राणवायु को रोककर जिस-जिस अंग के ऊपर चढ़ाते जाते, वहां के घाव भर जाते थे। थोड़ी देर में उनके शरीर के सभी घाव भर गए और प्राण ब्रह्मरंध्र यानी मस्तक को फोड़कर निकल गए।
 

Share this article
click me!