चाणक्य नीति: झगड़ालू पत्नी, मूर्ख पुत्र और विधवा पुत्री सहित ये 6 दुख अग्नि के समान जलाते हैं

आचार्य चाणक्य ने अपने सूत्रों में मनुष्य जीवन के सभी सुख-दुखों के बारे में विस्तार पूर्वक बताया है। उन्होंने अपनी नीतियों में ये भी बताया है कि सुखी और सफल जीवन के लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। जो लोग इन बातों का ध्यान नहीं रखते, उनके जीवन में परेशानियां बनी रहती हैं।

Asianet News Hindi | Published : Feb 8, 2021 3:33 AM IST

उज्जैन. आचार्य चाणक्य ने अपने एक सूत्र में बताया है कि वो कौन-से 6 दुख हैं जो मनुष्य को अग्नि के समान जीवन भर जलाते रहते हैं। ये हैं वो 6 दुख…

1. बुरे ग्राम का वास

कभी-कभी व्यक्ति को ना चाहते हुए भी ऐसे स्थान पर रहना पड़ता है, जो उसे पसंद नहीं होता। ऐसे स्थान पर रहने से मानसिक तनाव बना रहता है और मन में नकारात्मक विचार आते रहते हैं।

2. झगड़ालू स्त्री

जिस व्यक्ति की स्त्री कर्कशा यानी झगड़ालू प्रवृत्ति की होती है, उसका जीवन नरक के समान होता है। क्योंकि ऐसी स्त्रियां छोटी-छोटी बातों पर बड़ा विवाद करने लगती हैं और पूरे परिवार को परेशान करती हैं।

3. नीच कुल की सेवा

ऐसा परिवार जिसे समाज में नीच यानी दुष्ट या कपटी कहा जाता है, की सेवा करना भी किसी दुख से कम नहीं। ऐसे लोग सेवा तो जमकर करवाते हैं, लेकिन उसका मूल्य चुकाते समय धूर्त बन जाते हैं।

4. बुरा भोजन

ऐसा भोजन जिसमें न स्वाद हो और न ही पौष्टिकता किसी काम का नहीं होता। अगर ऐसा ना चाहकर भी लगातार ऐसा भोजन लगातार करना पड़े तो ये भी एक प्रकार का दुख ही है।

5. मूर्ख लड़का

पुत्र बुढ़ापे में माता-पिता का सहारा होता है, लेकिन अगर पुत्र मूर्ख हो तो वो जीवन भर माता-पिता पर बोझ बनकर रह जाता है। ऐसा पुत्र कोई नहीं चाहता। माता-पिता को उसकी चिंता जीवन भर लगी रहती है।

6. विधवा कन्या

पुत्री का विवाह होने पर माता-पिता को बहुत सुख की प्राप्ति होती है, लेकिन अगर पुत्री विधवा हो जाए तो इससे बड़ा दुख और कोई नहीं होता। माता-पिता को पुत्री के भविष्य की चिंता अग्नि के समान जलाती है।

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