प्रत्येक हिंदू त्योहार के साथ कुछ न कुछ परंपराएं जरूर जुड़ी होती हैं। इन परंपराओं के पीछे धार्मिक, वैज्ञानिक या मनोवैज्ञानिक तथ्य छिपे होते हैं। दीपावली (Diwali 2021) भी एक ऐसा ही त्योहार है। देखा जाए तो ये हिंदुओं का सबसे प्रमुख पर्व है। ये पर्व सिर्फ 1 दिन नहीं बल्कि 5 दिनों तक मनाया जाता है।
उज्जैन. दीपावली से जुड़ी कई परंपराएं हैं। समय के साथ कुछ परिवर्तन जरूर हुए हैं, लेकिन दीपावली (Diwali 2021) से जुड़ी ये परंपराए आज भी जस की तस हैं। जैसे दीपावली पर देवी लक्ष्मी के साथ श्रीगणेश और देवी सरस्वती की पूजा, देवी लक्ष्मी को खील-बताशे चढ़ाने की परंपरा, दीपावली पर दीपदान की परंपरा आदि। इन सभी परंपराओं के पीछे कोई न कोई तथ्य जरूर छिपा है। आज हम आपको दीपावली से जुड़ी कुछ ऐसी ही परंपराओं के बारे में बता रहे हैं, जो इस प्रकार है…
क्यों करते हैं देवी लक्ष्मी के साथ गणपति और सरस्वती की पूजा?
लक्ष्मी धन की देवी हैं, सरस्वती ज्ञान की तथा गणपति बुद्धि के देवता हैं। इससे अभिप्राय है कि हमें ऐसा ज्ञान प्राप्त करना चाहिए, जिससे हमारी बुद्धि निर्मल हो, साथ ही धन कमाने के काम भी आए। धन आएगा तो उसे संभालने का ज्ञान भी हमारे पास होना चाहिए और बुद्धि के उपयोग से उसे निवेश करना भी हमें आना चाहिए। इससे लक्ष्मी का स्थायी निवास हमारे घर में होगा।यही कारण है कि देवी लक्ष्मी के साथ श्रीगणेश और सरस्वती की भी पूजा की जाती है।
क्यों देवी लक्ष्मी को चढ़ाते हैं खील-बताशे?
खील यानी धान मूलत: धान (चावल) का ही एक रूप है। यह चावल से बनती है और उत्तर भारत का प्रमुख अन्न भी है। दीपावली के पहले ही इसकी फसल तैयार होती है, इस कारण लक्ष्मी को फसल के पहले भाग के रूप में खील-बताशे चढ़ाए जाते हैं। खील बताशों का ज्योतिषीय महत्व भी होता है। दीपावली धन और वैभव की प्राप्ति का त्योहार है और धन-वैभव का दाता शुक्र ग्रह माना गया है। शुक्र ग्रह का प्रमुख धान्य धान ही होता है। शुक्र को प्रसन्न करने के लिए हम लक्ष्मी को खील-बताशे का प्रसाद चढ़ाते हैं।
क्यों करते हैं दीपदान?
दीपावली के पांच दिनों में दीपदान की परंपरा है। नदी, पोखर, तालाब आदि में दीपदान किया जाता है। इससे पुण्य की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में अमावस्या तिथि पर दीपदान करने का सबसे बड़ा महत्व बताया गया है। पवित्र नदियों या सरोवर में दीपदान करने से दूषित ग्रह शांत होते हैं। अशुभ ग्रहों का प्रभाव शांत होता है और उनका शुभ प्रभाव बढ़ता है। दीपदान अमावस्या की शाम को किया जाता है। इसके लिए आटे के पांच दीयों में सरसों का तेल भरकर इन्हें किसी गत्ते के डिब्बे या पत्ते के दोने में किसी पवित्र नदी या सरोवर में प्रवाहित करें।
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