Geeta Jayanti 2022: हिंदू धर्म में 18 पुराण, 4 वेद के अलावा भी कई ग्रंथों की मान्यताएं हैं। श्रीमद्भागवत गीता भी इनमें से एक है। गीता महाभारत ग्रंथ का ही एक अंग है, लेकिन इसे अलग ग्रंथ के तौर पर मान्यता दी गई है। इस बार गीता जयंती का पर्व 3 दिसंबर, शनिवार को है।
उज्जैन. हिंदू धर्म में अनेक देवी-देवताओं, ऋषि-मुनियों आदि की जयंती मनाई जाती है। लेकिन ग्रंथों में सिर्फ श्रीमद्भागवत गीता की ही जयंती (Geeta Jayanti 2022) मनाई जाती है। ये पर्व अगहन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इस बार ये तिथि 3 दिसंबर, शनिवार को है। बहुत से घरों में श्रीमद्भागवत गीता पूजा स्थान पर रखी जाती है और रोज इसकी पूजा भी की जाती है। घर में अगर श्रीमद्भागवत गीता रखें तो कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है, नहीं तो अशुभ परिणाम भी भुगतने पड़ सकते हैं। आगे जानिए इन खास बातों के बारे में…
घर की पवित्रता का ध्यान रखें
अगर आपके घर में श्रीमद्भागवत गीता है तो आपको पवित्रता का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए यानी घर में समय-समय पर साफ-सफाई करते रहें। तामसिक चीजें जैसे मांस-मदिरा घर में न लेकर आएं। अगर पूजा का कमरा अलग है तो वहां जूते-चप्पल या चमड़े का कोई भी सामान न ले जाएं। ऐसा कोई भी काम न करें जिससे घर की पवित्रता भंग हो।
गीता को जमीन पर न रखें
श्रीमद्भागवत गीता एक पवित्र ग्रंथ हैं, जिसे सीधे जमीन पर या अन्य कहीं नहीं रखना चाहिए। इसे हमेशा काठ यानी लकड़ी के स्टैंड पर रखना चाहिए। किसी भी धर्म ग्रंथ को जमीन पर रखना अशुभ माना जाता है और ऐसा करने से लाइफ में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
बिना स्नान किए गीता को स्पर्श न करें
श्रीमद्भागवत गीता को गलती से भी अपवित्र अवस्था में हाथ न लगाएं यानी बिना नहाएं छुए नहीं। ऐसा करना महापाप माना गया है। अगर मंदिर या पूजा स्थान की सफाई भी करना हो तो पहले स्नान करें और बाद में मंदिर को साफ करें। बाद में पुन: एक बार नहा सकते हैं।
अधूरा न छोड़ें अध्याय
अगर आप श्रीमद्भागवत गीता का पाठ करते हैं तो इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखें को पढ़ते समय बीच में न उठें यानी कोई भी अध्याय अधूरा न पढ़ें। एक अध्याय पूरा होने के बाद दूसरे अध्याय दूसरे दिन पढ़ सकते हैं। एक अध्याय को बीच में छोड़ना शुभ नहीं माना जाता।
पाठ करते समय मन शांत और पवित्र रखें
श्रीमद्भागवत गीता का पाठ करते समय मन शांति और पवित्र होना चाहिए यानी किसी भी तरह के बुरे विचार मन में नहीं रखना चाहिए। गीता का पाठ करते समय शरीर के साथ-साथ मन का पवित्र होना भी जरूरी है। अगर रोज गीता का पाठ न कर पाएं तो सिर्फ एकादशी तिथि पर भी ये काम कर सकते हैं।
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