Hari-Har Milan in Ujjain: मध्य प्रदेश की धार्मिक राजधानी उज्जैन में अनेक परंपराओं का पालन किया जाता है। हरि-हर मिलन भी इनमें से एक है। इस परंपरा के अंतर्गत भगवान महाकाल (Lord Mahakal) गोपाल मंदिर जाकर सृष्टि का भार उन्हें सौंपते हैं।
उज्जैन. 6 नवंबर, रविवार को वैकुंठ चतुर्दशी का पर्व मनाया गया। उज्जैन में इस मौके पर हरि-हर मिलन की परंपरा निभाई गई। मान्यता के अनुसार, वैकुंठ चतुर्दशी पर भगवान शिव वैकुंठ लोक जाकर भगवान विष्णु से मिलते हैं और उन्हें सृष्टि का भार सौंपकर कैलाश पर्वत पर लौट जाते हैं। इसी परंपरा को उज्जैन में जीवंत रूप से निभाया जाता है। मान्यता के अनुसार, अब आने वाले 8 महीने में पृथ्वी के संचालन की जिम्मेदारी भगवान विष्णु के पास रहेगी।
उज्जैन में कैसे निभाई जाती है हरि-हर मिलन की परंपरा?
पूरे विश्व सहित भारत में केवल उज्जैन ही ऐसा स्थान है जहां पर प्रति वर्ष वैकुंठ चतुर्दशी पर हर यानी शिवजी के द्वारा हरि यानी विष्णु को सृष्टि का भार सौंपा जाता है। 6 नवंबर, रविवार की रात भी ऐसा ही नजारा उज्जैन में देखने को मिला। रात 11 बजे महाकाल मंदिर से चांदी की पालकी में सवार होकर हर, हरि के द्वार याने गोपाल मंदिर पहुंचे। इस दौरान मार्ग पर लोगों ने फूल बरसाकर अपने राजा का स्वागत किया। बाबा महाकाल को गोपाल मंदिर के गर्भगृह में ले जाया गया और पाट पर बैठाया गया।
तुलसी की माला और बिल्व पत्र चढ़ाकर किया पूजन
मंदिर के गर्भगृह में गोपाल मंदिर के पुजारी द्वारा बाबा महाकाल को तुलसाजी की माला पहनाई गई एवं पवमानसुक्त का पाठ किया गया। इसी प्रकार महाकाल भगवान की ओर से हरि को आंकड़े की माला पहनाकर शिव मंत्रों का पाठ किया गया। यह प्रक्रिया करीब 2 घण्टे तक चली। अर्धरात्रि में हरि को सृष्टि का भार सौंपकर पालकी महाकाल मंदिर के लिए निकली।
क्यों निभाई जाती है ये परंपरा?
मान्यता के अनुसार, चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु योगनिंद्रा में होते हैं और सृष्टि का संचालन शिवजी के पास होता है। देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु नींद से जागते हैं और इसके 2 दिन बाद शिवजी वैकुंठ लोक जाकर सृष्टि का भार पुन: भगवान विष्णु को सौंपते हैं और कैलाश पर्वत पर लौट जाते हैं। इसी मान्यता के आधार पर उज्जैन में हरि-हर मिलन की परंपरा निभाई जाती है।
भगवान महाकाल की पूजा करते पुजारी
पालकी में सवार होकर गोपाल मंदिर जाते भगवान महाकाल
हरि-हर मिलन के दौरान भक्तों ने भगवान महाकाल का फूल बरसाकर और आतिशबाजी पर स्वागत किया।
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