हमारे पूर्वजों ने यूं ही नहीं बनाई पौष मास में सूर्य पूजा की परंपरा, जानिए इसका वैज्ञानिक कारण

इस बार पौष मास की शुरूआत 20 दिसंबर, सोमवार से हो चुकी है, जो 17 जनवरी तक रहेगा। इस महीने से जुड़ी अनेक परंपराएं और मान्यताएं धर्म ग्रंथों में बताई गई हैं। इस महीने से जुड़ी ऐसी ही एक परंपरा है भगवान सूर्यदेव की पूजा करना।

Asianet News Hindi | Published : Dec 24, 2021 7:45 AM IST

उज्जैन. वैसे तो सूर्यदेव की उपासना रोज करनी चाहिए, लेकिन पौष महीने में सूर्य को अर्घ्य देने का विशेष महत्व बताया गया है। ऐसी मान्यता है कि पौष मास में भगवान भास्कर ग्यारह हजार रश्मियों के साथ तपकर सर्दी से राहत देते हैं। इस परंपरा के पीछे वैज्ञानिक तथ्य भी छिपे हैं। आगे जानिए इस परंपरा में छिपे धार्मिक और वैज्ञानिक तथ्यों के बारे में…

पौष मास का महत्व
वेदों में सूर्य को संसार की आत्मा कहा गया है। इसलिए इस महीने में भगवान सूर्य की पूजा करने का विशेष महत्व बताया गया है। हालांकि पौष महीने में शादी-विवाह आदि लौकिक उत्सव वर्जित माने गए हैं। इसलिए इन दिनों में सुबह जल्दी जागना चाहिए और सूर्य पूजा करनी चाहिए, सुबह-सुबह धूप में बैठना चाहिए। ऐसा करने से हमें धर्म लाभ के साथ ही स्वास्थ्य लाभ भी मिलते हैं। पौष महीने में भगवान सूर्य की पूजा के साथ ही अन्न और अन्य चीजों का दान करना चाहिए। ऐसा करने से लंबी उम्र मिलती है।

सेहत के फायदेमंद सूर्य पूजा
शीत ऋतु के कारण पाचन शक्ति भी कमजोर हो जाती है। सूर्य की किरणों के संपर्क में रहने से वह भी ठीक रहती है। पौष मास के दौरान दिन छोटे होते हैं और रातें बड़ी। इसलिए इस समय सूर्य का किरणें हमारे शरीर को निरोगी बनाए रखने के लिए जरूरी होती हैं। यही कारण है कि पौष मास में भगवान सूर्यदेव की पूजा की परंपरा बनाई गई है।

सूर्य से मिलती है ये खास चीज
पौष महीने में शीत ऋतु अपने चरम पर होती है। ठंड ज्यादा होने से स्किन संबंधी बीमारियां होने लगती हैं। साथ ही ठंड के कारण शरीर में विटामिन डी की कमी हो जाती है, जो हमें सूर्य की किरणों से मिलता है। सूर्यदेव को अर्घ्य देने और पूजा करने के दौरान उसकी किरणें हमारे शरीर पर पड़ती हैं। सूर्य की गर्मी के कारण त्वचा की बीमारियां होने का खतरा कम हो जाता है साथ ही विटामिन डी की कमी भी पूरी होती है।

 

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