आडंबरों के सख्त विरोधी थे संत कबीर, इनके दोहों से सीख सकते हैं जीवन प्रबंधन के सूत्र

24 जून, गुरुवार को ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा है। सन 1455 में इसी तिथि पर संत कबीर का जन्म हुआ था। कबीरदास जी के अनुयायी इस दिन को कबीर जयंती के रूप में मनाते हैं। इनके नाम पर कबीरपंथ संप्रदाय प्रचलित है।

Asianet News Hindi | Published : Jun 24, 2021 3:26 AM IST / Updated: Jun 24 2021, 10:32 AM IST

उज्जैन. संत कबीर आडम्बरों के सख्त विरोधी थे। उन्होंने लोगों को एकता के सूत्र का पाठ पढ़ाया। वे लेखक और कवि थे। उनके लिखे दोहे इंसान को जीवन की नई प्रेरणा देते थे।

मगहर में बीताया अंतिम समय
संत कबीरदास ने अपना पूरा जीवन काशी में बीताया, लेकिन जीवन के आखिरी समय मगहर चले गए थे। ऐसा उन्होंने मगहर को लेकर समाज में फैले अंधविश्वास को खत्म करने के लिए किया था। मगहर के बारे में कहा जाता था कि यहां मरने वाला व्यक्ति नरक में जाता है। कबीर दास ने इस अंधविश्वास को समाप्त करने के लिए मगहर में ही 1518 में देह त्यागी।

दोहों में छिपे हैं लाइफ मैनेजमेंट सूत्र
कबीरदास जी के दोहों में लाइफ मैनेजमेंट के कई सूत्र छिपे हैं, जो आज के समय में भी प्रासंगिक हैं। इन दोनों में छिपे जीवन प्रबंधन सूत्रों को अपने जीवन में उतारकर हम कई परेशानियों से बच सकते हैं।

दोहा- 1
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।

लाइफ मैनेजमेंट
कबीर कहते हैं मानव की सबसे बड़ी गलतफहमी है कि हर किसी को लगता है कि वो गलत नहीं है। यह दोहा हमारा व्यवहार हमें बता रहा है। ये दोहा कहता है कि जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला। पर जब मैंने अपने मन में झांककर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है। यानी हमें लोगों को परखने के बजाए खुद का आंकलन करना चाहिए।

दोहा- 2
साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,
सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।

लाइफ मैनेजमेंट
इस दोहे में कहा गया है कि सज्जन व्यक्ति को ऐसा होना चाहिए जैसे अनाज साफ करने वाला सूप होता है। जो सार्थक तत्व को बचा लेता है और निरर्थक को भूसे के रूप में उड़ा देता है। यानी ज्ञानी वही है जो बात के महत्व को समझे उसके आगे पीछे के विशेषणों से प्रभावित ना हो और इधर-उधर की बातों में उलझने के बजाए सिर्फ महत्वपूर्ण बातों पर ध्यान दे।

दोहा- 3
तिनका कबहुं ना निन्दिये, जो पांवन तर होय,
कबहुं उड़ी आंखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।

लाइफ मैनेजमेंट
इस दोहे के अनुसार एक छोटे से तिनके को भी कभी बेकार ना कहो जो तुम्हारे पांवों के नीचे दबा होता है, क्योंकि यदि कभी वह उड़कर आंख में आ गिरे तो गहरी पीड़ा देता है। यानी कबीर ने स्पष्ट बताया है कि छोटे-बड़े के फेर में नहीं पड़ना चाहिए। मनुष्य को सभी इंसानों को उनके जाति और कर्म से ऊपर उठकर सम्मान की दृष्टि से देखना ही सार्थक है।
 

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