Kushgrahani Amavasya 2022: इस बार भाद्रपद मास की अमावस्या 2 दिन रहेगी। 26 अगस्त, शुक्रवार को श्राद्ध अमावस्या और 27 अगस्त, शनिवार को कुशग्रहणी अमावस्या का योग इस बार बन रहा है। कुछ धर्म ग्रंथों में इसे कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा गया है।
उज्जैन. हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि का विशेष महत्व माना गया है क्योंकि इस तिथि के स्वामी पितृ देवता हैं। इसीलिए इस दिन पितरों को प्रसन्न करने के लिए श्राद्ध, तर्पण आदि किया जाता है। जयपुर के श्रीकल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष डॉ. मृत्युञ्जय तिवारी के अनुसार, इस बार 27 अगस्त को भाद्रपद मास की कुशग्रहणी अमावस्या (Kushgrahani Amavasya 2022) रहेगी। इस दिन कुश, जो एक प्रकार की पवित्र घास है, इकट्ठा की जाती है। इस घास का उपयोग मांगलिक कार्यों व श्राद्ध आदि में विशेष रूप से किया जाता है।
कुश में है त्रिदेवों का निवास
डॉ. तिवारी के अनुसार, कुश में त्रिदेवों का वास माना गया है, इसलिए इसे इतना पवित्र माना जाता है। कुश का मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और अग्रभाग में शिव का निवास माना जाता है। धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि एक ही कुश का उपयोग अनेक बार किया जा सकता है, ये कभी बासी नहीं होते और इनके दोबारा उपयोग पर कोई दोष भी नहीं लगता। अथर्ववेद में कुश घास के उपयोग के बारे में बताया गया है कि यह क्रोध को नियंत्रित करने में सहायक होती है।
ऐसे हुई कुश की उत्पत्ति
मत्स्य पुराण में कुश की उत्पत्ति के बारे में बताया गया है। उसके अनुसार, जब भगवान विष्णु ने वराह अवतार धारण कर हिरण्याक्ष नामक राक्षस का वध किया और धरती को समुद्र से निकाला पुन: अपने स्थान पर स्थापित किया तब उन्होंने अपने शरीर पर लगे पानी को झटका, तब उनके शरीर के कुछ बाल पृथ्वी पर आकर गिरे और कुश का रूप धारण कर लिया। तभी से कुश को पवित्र माना जाने लगा।
इसलिए भी पवित्र है कुश
महाभारत के अनुसार, जब गरुड़देव स्वर्ग से अमृत कलश लेकर आए तो उन्होंने कुछ देर के लिए अमृत कलश को जमीन पर कुश घास पर रख दिया था। कुश पर अमृत कलश रखे जाने से भी इसे बहुत ही पवित्र माना जाने लगा। जब कर्ण ने अपने पितरों का तर्पण किया तब उन्होंने कुश का ही उपयोग किया था। तभी से यह मान्यता है कि कुश पहनकर जो भी अपने पितरों का श्राद्ध करता है उनसे पितरदेव तृप्त होते हैं। सभी तरह के धार्मिक अनुष्ठान और पूजा-पाठ के दौरान कुश के आसन का प्रयोग करना बहुत ही शुभ माना जाता है।
किस तरह की घास सबसे अच्छी?
- डॉ. तिवारी के अनुसार, जिस घास में पत्ती हो, आगे का भाग कटा हुआ न हो और हरा हो, वो देवताओं और पितरों की पूजा के लिए सबसे अच्छी मानी गई है।
- कुशग्रहणी अमावस्या पर सूर्योदय के समय कुश लानी चाहिए। इस वक्त न ला पाएं तो दिन में अभिजित या विजय मुहूर्त में लाएं। सूर्यास्त के बाद घास नहीं तोड़नी चाहिए।
- कुशा घास से बना आसन सबसे ज्यादा अच्छा माना गया है। इस आसन पर बैठकर की गई पूजा से मिलने वाला पुण्य और बढ़ जाता है।
- मांगलिक कामों और पूजा-पाठ में इस घास को मोड़कर अंगुठी की तरह सीधे हाथ की रिंग फिंगर में पहना जाता है। ऐसा करने से पूजा में पवित्रता बनी रहती है।
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