Life Management: एक सज्जन डिप्रेशन में थे, काउंसलर ने उन्हें पुराने दोस्तों से मिलने को कहा…इसके बाद क्या हुआ?

जब कोई व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में रुकावटों का सामना करता है तो वह तनावग्रस्त हो जाता है। यह अक्सर व्यक्ति में द्वन्द्व और निराशा की भावना पैदा करता है। प्रबल निराशा मिलने के कारण यह द्वन्द्व और भी तनावपूर्ण हो जाता है। ऐसी स्थिति और भी भयंकर हो जाती है।

उज्जैन. हर व्यक्ति के जीवन में परेशानियां जरूर होती हैं। कई बार लोग परेशानियों के चलते डिप्रेशन में चले जाते हैं। इस स्थिति में व्यक्ति कई बार गलत फैसले भी ले लेता है। Asianetnews Hindi Life Management सीरीज चला रहा है। इस सीरीज के अंतर्गत आज हम आपको ऐसा प्रसंग बता रहे हैं जिसका सार यही है डिप्रेशन कोई बीमारी नहीं है, ये आपके मन का वहम है।

जब डिप्रेशन में आए व्यक्ति से काउंसलर ने करवाया ये काम
एक सज्जन बिजनेस में हुए घाटे को लेकर बहुत डिप्रेशन में चले गए। एक दिन उनकी पत्नी उनको लेकर काउंसलर के पास गई।
पत्नी बोली "ये भयंकर डिप्रेशन में हैं, अब आप ही कुछ कीजिए।"
काउंसलर ने थोड़ी देर उन सज्जन से बात की और उनकी पत्नी को बाहर बैठने के लिए कहा।
उन सज्जन ने काउंसलर को पूरी बात बता दी कि जीवन में एक के बाद एक आने वाली परेशानियों के लिए चलते उनकी ये हालत हो गई। सज्जन ने काउंसलर के सामने पूरे जीवन की किताब खोल दी।
काउंसलर ने कुछ देर सोचा और पूछा, "दसवीं में किस स्कूल में पढ़ते थे?"
सज्जन ने उन्हें स्कूल का नाम बता दिया।
काउंसलर ने कहा "आपको उस स्कूल में जाना होगा। आप वहां से आपकी दसवीं क्लास का रजिस्टर लेकर आना, अपने साथियों के नाम देखना और उन्हें ढूंढकर उनके वर्तमान हालचाल की जानकारी लेने की कोशिश करना। सारी जानकारी को डायरी में लिखना और एक माह बाद मुझे मिलना।"
सज्जन स्कूल गए, रजिस्टर ढूँढवाया फिर उसकी कॉपी करा लाए जिसमें 120 नाम थे। महीना भर दिन-रात कोशिश की फिर भी बमुश्किल अपने 75-80 सहपाठियों के बारे में जानकारी एकत्रित कर पाए।
मालूम हुआ कि उनमें से 20 लोग मर चुके थे...
7 विधवा/विधुर और 13 तलाकशुदा थे...
10 नशेड़ी निकले जो बात करने के भी लायक नहीं थे...
कुछ का पता ही नहीं चला कि अब वो कहां हैं...
5 इतने ग़रीब निकले की पूछो मत... 
6 इतने अमीर निकले कि यकीन नहीं हुआ...
कुछ केंसर ग्रस्त, कुछ लकवा, डायबिटीज़, अस्थमा या दिल के रोगी निकले...
एक दो लोग एक्सीडेंट्स में हाथ/पाँव या रीढ़ की हड्डी में चोट से बिस्तर पर थे...
कुछ के बच्चे पागल, आवारा या निकम्मे निकले...

जब सज्जन ने बात जाकर काउंसलर को बताई तो उन्होंने पूछा "अब बताओ डिप्रेशन कैसा है? 
सज्जन को काउंसलर की बात समझ आ चुकी थी। वे समझ चुके थे कि उन्हें कोई बीमारी नहीं है, वो भूखा नहीं मर रहा, दिमाग एकदम सही है, कचहरी पुलिस-वकीलों से उसका पाला नही पड़ा, उसके बीवी-बच्चे बहुत अच्छे हैं, स्वस्थ हैं, वो भी स्वस्थ है, डाक्टर, अस्पताल से पाला नहीं पड़ा। सज्जन को इस बात का अहसास हो चुका था कि दुनिया में वाकई बहुत दुख है और मैं बहुत सुखी और भाग्यशाली हूँ। 

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हर इंसान को यही लगता है कि दुनिया की सारी मुसीबतें उसी के हिस्से में आई है। ऐसा सोच-सोचकर ही वो तनाव में चला जाता है। जबकि हकीकत इससे बहुत अलग होती है। कुछ लोग जूते न खरीद पाने के कारण परेशान रहते हैं जबकि कुछ लोगों के तो पैर ही नहीं होते। इसलिए भगवान ने जो दिया है, उसके लिए उसे धन्यवाद दें और काम ईमानदारी से करते रहें।


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