Life Management: पानी में मेंढक को डालकर जब बर्तन स्टोव पर रखा गया तो इसके बाद क्या हुआ, क्या वो बाहर कूदा?

अक्सर परिस्थितियाँ विपरीत होने पर हम उसे सुधारने या उससे बाहर निकलने का प्रयास ना कर उससे तालमेल बैठाने में लग जाते है। हमारी आँख तब खुलती है, जब परिस्थितियां बेकाबू हो जाती हैं और हम पछताते रह जाते हैं कि समय रहते हमने कोई प्रयास क्यों नहीं किया।

Asianet News Hindi | Published : Jan 7, 2022 5:20 AM IST

उज्जैन. परिस्थितियों से लड़ना आवश्यक है, लेकिन समय रहते उससे बाहर निकल जाना बुद्धिमानी है। Asianetnews Hindi Life Management सीरीज चला रहा है। इस सीरीज के अंतर्गत आज हम आपको ऐसा प्रसंग बता रहे हैं जिसका सार यही है समय रहते परेशानी की स्थिति से बाहर निकल जाना चाहिए।

जब गर्म पानी से मारा गया मेंढक
एक बार वैज्ञानिकों ने शारीरिक बदलाव की क्षमता की जांच के लिए एक शोध किया। शोध में एक मेंढक लिया गया और उसे एक कांच के जार में डाल दिया गया फ़िर जार में पानी भरकर उसे गर्म किया जाने लगा। जार में ढक्कन नहीं लगाया गया था, ताकि जब पानी का गर्म ताप मेंढक की सहनशक्ति से बाहर हो जाए, तो वह कूदकर बाहर आ सके।
प्रारंभ में मेंढक शांति से पानी में बैठा रहा। जैसे-जैसे पानी का तापमान बढ़ना प्रारंभ हुआ, मेंढक में कुछ हलचल सी हुई। उसे समझ में तो आ गया कि वो जिस पानी में बैठा है, वो हल्का गर्म सा लग रहा है, लेकिन कूदकर बाहर निकलने के स्थान पर वो अपनी शरीर की ऊर्जा बढ़े हुए तापमान से तालमेल बैठाने में लगाने लगा।
पानी थोड़ा और गर्म हुआ, मेंढक को पहले से अधिक बेचैनी महसूस हुई। लेकिन, वह बेचैनी उसकी सहनशक्ति की सीमा के भीतर ही थी, इसलिए वह पानी से बाहर नहीं कूदा, बल्कि अपने शरीर की ऊर्जा उस गर्म पानी में तालमेल बैठाने में लगाने लगा।
धीरे-धीरे पानी और ज्यादा गर्म होता गया और मेंढक अपने शरीर की अधिक ऊर्जा पानी के बढ़े हुए तापमान से तालमेल बैठाने में लगाता रहा।
जब पानी उबलने लगा, तो मेंढक की जान पर बन आई। अब उसकी सहनशक्ति जवाब दे चुकी थे। उसने जार से बाहर कूदने के लिए अपने शरीर की शक्ति बटोरी, लेकिन वह पहले ही शरीर की समस्त ऊर्जा धीरे-धीरे उबलते पानी से तालमेल बैठाने में लगा चुका था। अब उसके शरीर में जार से बाहर कूदने की ऊर्जा शेष नहीं थी। वह जार से बाहर कूदने में नाकाम रहा और उसी जार में मर गया।

लाइफ मैनेजमेंट
परेशानियों का अनुभव होते ही परिस्थितियां सुधारने की कार्यवाही प्रारंभ कर दें और जब समझ आ जाये कि अब इन्हें संभालना मुश्किल है, तो उससे बाहर निकल जायें। इसी में बुद्धिमानी है।

 

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