जब सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर में प्रवेश करता है तो मकर संक्रांति (Makar Sankranti 2022) का पर्व मनाया जाता है। हर साल ये उत्सव 14 या 15 जनवरी को मनाया जाता है। इस बार भी 14 जनवरी की रात लगभग 9 बजे सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेगा। इसलिए 15 जनवरी को संक्रांति का पुण्यकाल रहेगा।
उज्जैन. मकर संक्रांति (Makar Sankranti 2022) पर पवित्र नदियों में स्नान, दान, जाप करने का विशेष महत्व होता है। इस दिन तिल, तिल से बने लड्डू, हरी सब्जियां, फल और खिचड़ी का दान विशेष रूप से किया जाता है। इस पर्व से जुड़ी कुछ परंपराएं भी हैं। इन्हीं में से एक है तिल-गुड़ के लड्डू खाने और दान करने की परंपरा। इस परंपरा से पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक कारण भी छिपे हैं। आगे जानिए इस परंपरा से जुड़ी खास बातें…
तिल-गुड़ के लड्डू खाने का वैज्ञानिक कारण
सर्दी में जब शरीर को गर्मी की आवश्यकता होती है, तब तिल-गुड़ के व्यंजन यह काम बखूबी करते हैं। तिल में तेल की प्रचुरता रहती है और गुड़ की तासीर भी गर्म होती है। तिल-गुड़ को मिलाकर जो व्यंजन बनाए जाते हैं, वह सर्दी के मौसम में शरीर में आवश्यक गर्मी पहुंचाते हैं। तिल में पर्याप्त मात्रा में फाइबर होता है, जो पाचन शक्ति को बढ़ाता है। तिल में कई प्रकार के प्रोटीन, कैल्शियम, बी काम्प्लेक्स और कार्बोहाइट्रेड आदि तत्व पाये जाते हैं, जो इस मौसम में शरीर के लिए जरूरी होते हैं। गुड़ मैग्नीशियम का एक बेहीतरीन स्रोत है। यही कारण है कि मकर संक्रांति के अवसर पर तिल व गुड़ के व्यंजन प्रमुखता से खाए जाते हैं।
तिल-गुड़ के लड्डू खाने का ज्योतिषिय कारण
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार तिल का संबंध शनिदेव से है और सूर्यदेव का संबंध गुड़ से है। संक्रांति के दिन सूर्यदेव शनि के घर मकर राशि में जाते हैं, ऐसे में काले तिल और गुड़ से बने लड्डू सूर्य और शनि के मधुर संबंध का प्रतीक माना जाता है। सूर्य और शनि दोनों ही मजबूत ग्रह माने हाते हैं और ऐसे में जब काले तिल और गुड़ के लड्डुओं का दान दिया जाता है तो सूर्यदेव और शनिदेव दोनों ही प्रसन्न होते हैं। प्रसाद के रूप इसको ग्रहण करने से उनकी कृपा से घर में सुख समृद्धि आती है।
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