Ram Navami 2022: पाना चाहते हैं सक्सेस तो हमेशा ध्यान रखें भगवान श्रीराम की ये 5 लाइफ मैनेजमेंट टिप्स

10 अप्रैल, रविवार को श्रीराम नवमी (Ram Navami 2022) का पर्व मनाया जाएगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, त्रेतायुग में इसी तिथि पर भगवान विष्णु ने अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र श्रीराम के रूप में अवतार लिया था। इसीलिए हर वर्ष इस तिथि पर भगवान श्रीराम का जन्मोत्सव बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है।

Manish Meharele | Published : Apr 8, 2022 10:39 AM IST / Updated: Apr 08 2022, 05:36 PM IST

उज्जैन. वैसे तो भगवान विष्णु ने मानव रूप में कई बार अवतार लिया, लेकिन मर्यादा पुरुषोत्तम सिर्फ श्रीराम को ही कहा जाता है क्योंकि भगवान होकर भी उन्होंने एक मनुष्य की तरह जीवन यापन किया और मर्यादा का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया। श्रीराम नवमी के मौके पर हम आपको भगवान श्रीराम के लाइफ मैनेजमेंट सूत्रों के बारे में बता रहे हैं, जो जीवन में आपके काम आ सकते हैं। आगे जानिए इन लाइफ मैनेजमेंट सूत्रों के बारे में…

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1. माता-पिता के परम आज्ञाकारी
भगवान श्रीराम ने जीवन भर अपने माता-पिता का आज्ञा का पालन किया। पिता के वचन को पूरे करने के लिए वनवास जाना स्वीकार किया और 14 साल तक उस वचन का पालन किया। रामचरित मानस में एक प्रसंग ये भी है कि राजा दशरथ श्रीराम के वन जाने को लेकर इतनी दुखी थे, कि उन्होंने कहा था कि तुम मुझे बलपूर्वक बंदी बना लो और राजा बन जाओ। लेकिन पिता की मनोदशा को समझते हुए उन्होंने वनवास जाना ही स्वीकार किया।

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2. बंधे रहे एक पत्नी के नियम से
त्रेतायुग में जिस समय बहुपत्नी का प्रचलन था, उस समय भी श्रीराम ने एक पत्नी व्रत का पालन किया और देवी सीता को ही अपनी अर्धांगिनी स्वीकार किया। सिर्फ इतना ही नहीं देवी सीता के पाताल लोक जाने के बाद जब भी श्रीराम ने कोई अनुष्ठान किया, पत्नी के रूप में सोने से निर्मित देवी सीता की प्रतिमा को अपने पास स्थान दिया। 

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3. भाइयों के प्रति समान स्नेह रखा 
भगवान श्रीराम के 3 छोटे भाई थे- लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। तीनों ही उन्हें समान रूप से प्रिय थे। लक्ष्मण को उन्होंने सदैव अपने साथ रखा, लेकिन भरत और शत्रुध्न को भी कभी अपने से दूर नहीं किया। उन्हें भी समय-समय पर उचित मार्गदर्शन दिया।

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4. जाति भेद मिटाया
भगवान श्रीराम ने अपने जीवन में कभी भी जाति भेद को बढ़ावा नहीं दिया बल्कि उसका विरोध ही किया। यही कारण है कि जब शबरी ने उन्हें अपने झूठे बेर खाने को दिया तो उन्होंने उसे खाकर सामाजिक समरसता का परिचय दिया। ऐसा करके उन्होंने समाज में संदेश दिया कि सच्ची श्रृद्धा से कोई भी ईश्वर का प्रिय बन सकता है।

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5. मित्रता के लिए तत्पर
श्रीराम ने अपने जीवन में मित्रता को महत्व दिया। उनके मित्र सुग्रीव को उन्होंने किष्किंधा का राजा बनाया, विभीषण को लंका का राज्यभार सौंपा। समय-समय पर जब भी मित्र पर विपत्ति आई, श्रीराम ने हर मौके पर उनकी सहायता की। निम्न जाति के निषाधराज को भी उन्होंने अपने मित्र माना और उनका आतिथ्य भी स्वीकार किया।
 

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