सिर्फ खाने-पीने की पाबंदी तक ही सीमित नहीं है रोजा, रखना पड़ता है इन बातों का भी ध्यान

खुदा की इबादत का महीना रमजान 25 अप्रैल, शनिवार से शुरू हो चुका है। इस्लामी मान्यताओं के अनुसार, पैगंबर ने ही यह आदेश दिया था कि रमजान अल्लाह का माह है इसलिए इस महीने में हर मुसलमान को रोजा जरूर रखना चाहिए।

Asianet News Hindi | Published : Apr 27, 2020 6:37 PM IST

उज्जैन. रोजा रखने से अल्लाह खुश होकर हर रोजेदार की इबादत कबूल करता है। इसलिए इस्लाम में रोजा गहरी आस्था के साथ रखे जाते हैं। किंतु इस्लाम धर्म का रोजा सिर्फ भूखे-प्यासे रहने की परंपरा मात्र नहीं है। बल्कि रोजे के दौरान कुछ मानसिक और व्यावहारिक बंधन भी जरूरी बताए गए हैं। रोजे से जुड़े कुछ जरूरी नियम इस प्रकार हैं-

1. रोजे का खास कायदा यह है कि सूरज निकलने से पहले सहरी कर के रोजा रखा जाता है। जबकि सूरज डूबने के बाद इफ्तार होता है। जो लोग रोजा रखते हैं वो सहरी और इफ्तार के बीच कुछ भी नहीं खा-पी सकते।
2. रोजे का मतलब सिर्फ अल्लाह के नाम पर भूखे-प्यासे रहना ही नहीं है। इस दौरान आंख, कान और जीभ का भी रोजा रखा जाता है। इसका मतलब ये है कि कुछ बुरा न देखें, न बुरा सुनें और न ही बुरा बोलें।
3. रोजे के दौरान मन में बुरे विचार या शारीरिक संबंधों के बारे में सोचने की भी मनाही होती है। शारीरिक संबंध बनाने से रोजा टूट जाता है।
4. रोजा रखने वाले को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि दांत में फंसा हुआ खाना जानबूझकर न निगलें। नहीं तो रोजा टूट जाता है।
5. इस्लाम में कहा गया है कि रोजे की हिफाजत जुबान से करनी चाहिए। इसलिए किसी की बुराई नहीं करनी और किसी का दिल न दुखे इसलिए सोच-समझकर बोलना चाहिए।

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