महाभारत में अनेक पात्र हैं, महात्मा विदुर भी इनमें से एक हैं। विदुर पांडु और धृतराष्ट्र के भाई और हस्तिनापुर के महामंत्री थे। उन्होंने युद्ध से पहले धृतराष्ट्र को ज्ञान की कई ऐसी बातें बताई थी, जो आज के समय में भी प्रासंगिक हैं।
उज्जैन. महात्मा विदुर द्वारा कही गई इन्हीं बातों को विदुर नीति कहा जाता है। आज हम आपको विदुर नीति से जुड़ी कुछ खास बातें बता रहे हैं, जो इस प्रकार है…
द्वे कर्मणी नरः कुर्वन्नस्मिँल्लोके विरोचते।
अब्रुवन्परुषं किं चिदसतो नार्थयंस्तथा ॥
अर्थ: जो व्यक्ति किसी से भी कठोर नही बोलता और हमेशा सभी से प्रेमपूर्वक व्यवहार करता है। इसके लावा दुष्ट पुरुषों से मेल-जोल नहीं रखता, वो समाज में विशेष स्थान पाता है।
द्वाविमौ कण्टकौ तीक्ष्णौ शरीरपरिशोषणौ।
यश्चाधनः कामयते यश्च कुप्यत्यनीश्वरः॥
अर्थ- जो व्यक्ति निर्धन होकर भी बहुमूल्य वस्तुओं की कामना रखता है और जो असमर्थ यानी असहाय होकर भी किसी पर क्रोध करता है, ऐसे लोगों को हमेशा दुख ही मिलता है।
द्वावेव न विराजेते विपरीतेन कर्मणा।
गृहस्थश्च निरारम्भः कार्यवांश्चैव भिक्षुकः॥
अर्थ- जो व्यक्ति गृहस्थ है परिवार वाला होकर भी कोई काम नहीं करता, सिर्फ आलस्य के कारण पड़ा रहता है और ऐसा संन्यासी जो भौतिक सुख-सुविधाओं में लिप्त रहता है इन्हें समाज में कोई मान-सम्मान प्राप्त नहीं होता।
न्यायागतस्य द्रव्यस्य बोद्धव्यौ द्वावतिक्रमौ ।
अपात्रे प्रतिपत्तिश्च पात्रे चाप्रतिपादनम् ॥
अर्थ- जो पैसा किसी अपात्र को दिया जाता है और सत्पात्र यानी हकदार को नहीं दिया जाता, ऐसा पैसा किसी काम का नहीं होता। यही धन का दुरुपयोग कहलाता है।
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