एक वोट की कीमत: एनडीए-महागठबंधन के बीच प्रतिष्ठा की लड़ाई में किसी तरह ये सीट जीत पाई थी BJP

2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में कई सीटों पर नजदीकी फाइट देखने को मिली थी। यहां एक हजार से भी काफी कम मतों से हार-जीत का फैसला हुआ था। 

पटना। बिहार में विधानसभा (Bihar Polls 2020) हो रहे हैं। इस बार राज्य की 243 विधानसभा सीटों पर 7.2 करोड़ से ज्यादा वोटर मताधिकार का प्रयोग करेंगे। 2015 में 6.7 करोड़ मतदाता थे। कोरोना महामारी (Covid-19) के बीचे चुनाव कराए जा रहे हैं। इस वजह से इस बार 7 लाख हैंडसैनिटाइजर, 46 लाख मास्क, 6 लाख PPE किट्स और फेस शील्ड, 23 लाख जोड़े ग्लब्स इस्तेमाल होंगे। यह सबकुछ मतदाताओं और मतदानकर्मियों की सुरक्षा के मद्देनजर किया जा रहा है। ताकि कोरोना के खौफ में भी लोग बिना भय के मताधिकार की शक्ति का प्रयोग कर सकें। 

बिहार चुनाव समेत लोकतंत्र की हर प्रक्रिया में एक-एक वोट की कीमत है। 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में कई सीटों पर नजदीकी फाइट देखने को मिली थी। यहां एक हजार से भी काफी कम मतों से हार-जीत का फैसला हुआ था। उस वक्त चुनाव एनडीए और महागठबंधन के बीच प्रतिष्ठा की लड़ाई बन गई थी। दरअसल, प्रधानमंत्री के रूप में बीजेपी की ओर से नरेंद्र मोदी की ताजपोशी नीतीश कुमार को पसंद नहीं आई थी और उन्होंने एनडीए छोड़कर लालू यादव से हाथ मिला लिया था। बीजेपी हर हाल में चुनाव जीतना चाहती थी। चनपटिया (Chanpatia) विधानसभा सीट पर एनडीए और महागठबंधन के बीच कांटे की लड़ाई हुई थी। 

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2015 में अलग था एनडीए का स्वरूप 
उस वक्त एनडीए (NDA) में एलजेपी, वीआईपी, आरएलएसपी और हिन्दुस्तानी अवामी मोर्चा शामिल थी। जबकि महागठबंधन में जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस शामिल थी। एनडीए में चनपटिया की सीट बीजेपी के खाते में आई थी। पार्टी ने यहां से प्रकाश राय (Prakash Rai) को उम्मीदवार बनाया था। उनके सामने जेडीयू के एनएन शाही (AN Shahi) मैदान में थे। चनपटिया का चुनाव कितना नजदीकी था ये मतगणना में ही साफ हो गया। नतीजे तेजी से इधर से उधर बदल जा रहे थे। किसकी जीत होगी इसका अनुमान लगाना भी मुश्किल होता जा रहा था। 

और किसी तरह जीत गई बीजेपी 
आखिर में जब आखिरी राउंड की काउंटिंग खत्म हुई तो बीजेपी के प्रकाश राय ने किसी तरह महज 464 वोटों से प्रतिष्ठा की जीत हासिल की। प्रकाश को 61,304 जबकि एएन शाही को 60840 वोट मिले थे। लालू-नीतीश की घेराबंदी भी शाही के काम न आई और उनके हिस्से सिर्फ एक-एक वोट का अफसोस रह गया। 2015 के चुनाव में महागठबंधन ने 178 सीटें जीत ली। ये दूसरी बात है कि सत्ता खींचतान और मतभेदों की वजह से बाद में नीतीश कुमार एनडीए में चले आए। आरजेडी को सत्ता से बाहर होना पड़ा। लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हर वोट बेशकीमती होता है। इसलिए हर मतदाता का कर्तव्य है कि अपनी वोट की शक्ति का इस्तेमाल करे। 

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