
बांका (banka). बिहार में सबसे बड़े, सबसे कठिन और आस्था से भरपूर छठ पर्व की शुरूआत हो चुकी है। आज यानि शनिवार के दिन इस पर्व का दूसरा दिन है, इसके तहत लोगों द्वारा खरना पूजा की जाती है। इसमें 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती है। वैसे तो इस पर्व पर ज्यातादर महिलाएं ही उपवास रखती है। लेकिन बिहार के बांका में एक ऐसा गांव भी है, जहां केवल यहां के सभी पुरुष इस कठिन व्रत को रखते है। जानिए क्या है इसके पीछे की खास वजह।
पुरुषों के संकल्प ने बचाई जिंदगी
दरअसल बांका के कटोरिया ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले पिपराडीह गांव में एक घटना होने लगी। जिसमें यहां की बेटियों के पैदा होने के बाद से ही मौत होने लगी। गांव के लोगों ने इससे परेशान होकर कई वैद्य-हकीम और डॉक्टरों को दिखाने के बाद भी मौतो में कमी नहीं हुई। इसके बाद गांव के लोगों ने वहां छठ माता की शरण में जाने की ठानी इसके बाद। गांव के पुरुषों ने छठ पूजा का व्रत रखना शुरू किया। इसके बाद से गांव में बच्चियों की इस तरह मौत होने का सिलसिला रुक गया। तब से हर साल गांव के लोग ही पूरा तीन दिन का व्रत करते है।
तब शुरु हुई प्रथा, आज भी हो रहा पालन
पुरुषों के द्वारा छठ माई की पूजा करने से जो आपदा टली इसके साथ ही गांव में उन्नति होने लगी। तब से यहां की महिलाओं को छोड़ केवल पुरुष ही इस पूजा को करने लगे। वहीं यहां के बुजुर्ग कहते है कि इससे हमको आध्यात्मिक शांति का अनुभव होता है। हमने सोचा भी नहीं था कि केवल व्रत मात्र करने से कुछ ऐसा प्राप्त हो जाएगा।
बता दे कि केवल पुरुषों द्वारा पूजा करने में बांका जिला ही नहीं बल्कि समस्तीपुर के रघुनाथपुर गांव में भी कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिलता है। जहां के पुरुष मिलकर छठ पूजा की सभी विधियों का पालन करते हुए उपवास को पूरा करते है। वहीं उनके इस काम में उनकी पत्नियां उनका साथ देती है।
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