बिहार में जातिगत जनगणना की मांग : पटना से दिल्ली तक पदयात्रा करेंगे तेजस्वी यादव, जानिए सियासी नफा-नुकसान

इधर, जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह का कहना है कि उनकी पार्टी भी जातीय जनगणना के पक्ष में है। अगर तेजस्वी यादव के पैदल मार्च ही करना है तो यह उनका व्यक्तिगत फैसला हो सकता है। अगर नेता प्रतिपक्ष को मुख्यमंत्री से मिलना है तो ये फैसला सीएम ही लेंगे।

पटना : बिहार (Bihar) में एक बार फिर जातिगत जनगणना की मांग को लेकर विपक्ष के तेवर बदले-बदले से हैं। RJD लीडर और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) की सरकार के अल्टीमेटम के बाद सियासी पारा हाई है। तेजस्वी यादव ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ दो दिनों तक चले चिंतन-मनन के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को जातिगत जनगणना पर 72 घंटे का अल्टीमेटम दिया और कहा कि अगर इस समय में उन्होंने अपनी मंशा स्पष्ट नहीं की तो वे पटना से दिल्ली तक पैदल यात्रा करेंगे।

सीएम का अगला कदम क्या बताएं
तेजस्वी ने राज्य में जातिगत जनगणना की मांग को दोहराते हुए कहा कि उनकी ही पहल और दबाव के कारण विधानसभा में इसको लेकर प्रस्ताव भी पारित हुआ और सीएम नीतीश कुमार सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के साथ दिल्ली में जाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) से भी मुलाकात की। लेकिन जब मुख्यमंत्री से सोमवार को इसकी चर्चा की गई तो उन्होंने सर्वदलीय बैठक की बात कही। अब वे बताएं कि ये बैठक कब होगी? उनका अगला कदम क्या होगा? अगर वे नहीं बता पाते हैं तो दिल्ली तक पदयात्रा के अलावा तेजस्वी के पास कोई और विकल्प ही नहीं है।

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बात सियासी नफा-नुकसान की
राजनीतिक जानकार बताते हैं कि RJD की इस मांग के पीछे अपने वोटबैंक को मजबूत करने की रणनीति पर काम करना है। जातीय जनगणना की मांग के पीछे भले ही समावेशी और सर्वांगीण विकास की बात हो रही है लेकिन मुख्य एजेंडा खुद को ओबीसी का सबसे बड़ा हितैषी बताकर वोटबैंक पर पकड़ बनाने की है। राजनीतिक विशेषज्ञ बताते हैं कि दरअसल ओबीसी मतदाताओं की संख्या 52 प्रतिशत बताई जाती है, ऐसे में इतने बड़े वोटबैंक को अपने पाले में लाने की यह पूरी कवायद है। इसका एक कारण यह भी है कि क्षेत्रीय दलों का उदय ही जाति आधारित होता है। अब चूंकि बिहार की राजनीति का बेस ही जाति है, इसलिए कई और दल सुर में सुर मिला सकते हैं।

क्या कभी जातीय जनगणना हुई है
देश में आजादी के पहले 1931 में पहली बार जातिगत आधार पर जनगणना हुई थी। इसके बाद साल 2011 में यूपीए के शासनकाल में भी ऐसा हुआ, लेकिन तब रिपोर्ट में कमियां बता कर उसे जारी नहीं किया गया था। तब कहा गया था कि रिपोर्ट में 34 करोड़ के करीब लोगों की जानकारी गलत थी, इसलिए इसे सामने नहीं लाया गया। अब भले ही बिहार में तेजस्वी यादव इसकी मांग कर रहे हैं लेकिन उनके साथ सूबे के मुखिया नीतीश कुमार भी इसकी मांग कर चुके हैं। अब देखना होगा कि इस पर बाकी दलों का रुख क्या होता है और सियासी हलचल कितनी मचती है?

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